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________________ १७ षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०-(वचि:) उक्त:, उक्तवान् । उसने कहा। (स्वपि:) सुप्त:, सुप्तवान् । वह सो गया। (यजादिः) इष्ट, इष्टवान् । उसने यज्ञ किया। (वप) उप्त:, उप्तवान् । उसने बीज बोया/काटा। सिद्धि-(१) उक्त: । वच्+क्त। वच्+त। उ अच्+त। उच्+त। उक्+त। उक्त+सु। उक्तः। यहां वच परिभाषणे' (अदा०प०) धातु से निष्ठा' (२।२।३६) से भूतकाल में निष्ठा-संज्ञक 'क्त' प्रत्यय है। 'क्त' प्रत्यय के कित् होने से इस सूत्र से 'वच्’ के वकार को उकार सम्प्रसारण होता है। सम्प्रसारणाच्च' (६।१ ।१०६) से अकार को पूर्वरूप एकादेश होता है। ऐसे ही निष्वप् शये' (अदा०प०) धातु से-सुप्त: । 'डुवप् बीजसन्ताने छेदने च' (भ्वा०उ०) धातु से-उप्तः । (२) उक्तवान् । यहां पूर्वोक्त वच्' धातु से पूर्ववत् निष्ठा-संज्ञक क्तवतु प्रत्यय है। क्तवतु' प्रत्यय के कित् होने से वच्’ के वकार को उकार सम्प्रसारण और पूर्ववत् अकार को पूर्वरूप एकादेश होता है। 'अत्वसन्तस्य चाधातो:' (६।४।१४) से उपधा को दीर्घ और प्रत्यय के उगित् होने से उगिदचां सर्वनामस्थानेऽधातो:' से नुम् आगम, हल्याब्भ्यो दीर्घात्' (६।२/६७) से सु का लोप और संयोगान्तस्य लोपः' (८।२।२३) से तकार का लोप होता है। ऐसे ही 'जिष्वप शये' (अदा०प०) धातु से-सुप्तवान् । 'डुवप् बीजसन्ताने छेदने च' (भ्वा०उ०) धातु से-उप्तवान् । (३) इष्टः । यज्+क्त। यज्+त। इ अ ज्+त । इज्+त। इष्+ट । इष्ट+सु । इष्टः । यहां यज देवपूजासङ्गतिकरणदानेषु' (भ्वा० उ०) धातु से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय है। क्त प्रत्यय के कित् होने से इस सूत्र से यज्' के यकार को इकार सम्प्रसारण होता है। 'सम्प्रसारणाच्च' (६।१।१०६) से अकार को पूर्वरूप एकादेश होता है। व्रश्चभ्रस्ज०' (८।२।३६) से यज् के जकार को षकार और 'ष्टुना ष्टुः' (८।४।४१) से तकार को टकार आदेश होता है। (४) इष्टवान् । यहां पूर्वोक्त यज्' धातु से पूर्ववत् निष्ठा-संज्ञक क्तवतु' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। विशेष: यजादि धातु भ्वादिगण के अन्तर्गत हैं। उन्हें संस्कृतभाग में देख लेवें। डिति किति च सम्प्रसारणम् (४) ग्रहिज्यावयिव्यधिवष्टिविचतिवृश्चति पृच्छतिभृज्जतीनां डिति च।१६। प०वि०-ग्रहि-ज्या-वयि-व्यधि-वष्टि-विचति-वृश्चति-पृच्छतिभृज्जतीनाम् ६।३ ङिति ७१ च अव्ययपदम् ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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