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षष्टाध्यायस्य द्वितीयः पादः
३११ सिद्धि-इन्द्रप्रस्थ: । यहां इन्द्र और प्रस्थ शब्दों का षष्ठी (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से प्रस्थ' शब्द उत्तरपद होने पर कादि से भिन्न तथा अवृद्धसंज्ञक 'इन्द्र' पूर्वपद को आधुदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-कुण्डप्रस्थ: आदि।
विशेष प्रस्थान्त नाम कुरुक्षेत्र और कुरु जनपद के प्रदेश की भौगोलिक विशेषता थे। वहां प्रस्थ' की जगह पत' स्थान-नामों के अन्त में पाया जाता है, जैसे-पानीपत, बाघपत, सोनीपत, मारीपत, तिलपत (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० ८०-८१) । आधुदात्तम्
(२५) मालादीनां च।८८। प०वि०-माला-आदीनाम् ६ ।३ च अव्ययपदम् । स०-माला आदिर्येषां ते मालादय:, तेषाम्-मालादीनाम् (बहुव्रीहि:)। अनु०-पूर्वपदम्, आदि:, उदात्त:, प्रस्थे इति चानुवर्तते । अन्वयः-प्रस्थे मालादीनां च पूर्वपदम् आदिरुदात्त:।
अर्थ:-प्रस्थ-शब्दे उत्तरपदे मालादीनां शब्दानां च पूर्वपदमाद्युदात्तं भवति।
उदा०-(माला) मालाया: प्रस्थ इति मालाप्रस्थ: । (शाला) शालाप्रस्थ:, इत्यादिकम्।
माला। शाला। शोणा। द्राक्षा। क्षौमा। क्षामा। काञ्ची। एक। काम। इति मालादयः ।।
आर्यभाषा: अर्थ-(प्रस्थे) प्रस्थ शब्द उत्तरपद होने पर (मालादीनाम्) माला आदि शब्दों में विद्यमान (पूर्वपदम्) पूर्वपद (च) भी (आदिरुदात्त:) आधुदात्त होता है।
उदा०-(माला) मालाप्रस्थः । स्थानविशेष का नाम। (शाला) शालाप्रस्थः । स्थानविशेष का नाम इत्यादि।
___ सिद्धि-मालाप्रस्थः। यहां माला और प्रस्थ शब्दों का 'षष्ठी (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से प्रस्थ' शब्द उत्तरपद होने पर 'माला' पूर्वपद को आधुदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-शालाप्रस्थः । आधुदात्तम्
(२६) अमहन्नवं नगरेऽनुदीचाम् ।८६। प०वि०-अमहत्-नवम् ११ नगरे ७।१ अनुदीचाम् ६ ।३ ।