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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ- (शालायाम्) शाला शब्द उत्तरपद होने पर (छात्र्यादय:) छात्रि-आदि (पूर्वपदम्) पूर्वपद (आदिरुदात्त:) आधुदात्त होते हैं।
उदा०-छात्रिशाला। छात्रि नामक आचार्य की पाठशाला (गुरुकुल)। ऐलिशाला (पैलिशाला)। ऐलि/पैलि नामक आचार्य की पाठशाला। भाण्डिशाला । भाण्डि नामक आचार्य की पाठशाला। व्याडिशाला । व्याडि नामक आचार्य की पाठशाला। आपिशलिशाला। आपिशलि नामक आचार्य की पाठशाला।
सिद्धि-छात्रिशाला। यहां छात्रि और शाला शब्दों का षष्ठी' (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से 'शाला' शब्द उत्तरपद होने पर 'छात्रि' पूर्वपद को आधुदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-ऐलिशाला (पैलिशाला) आदि। आधुदात्तम्
(२४) प्रस्थेऽवृद्धमकादीनाम्।८७। प०वि०-प्रस्थे ७।१ अवृद्धम् ११ अकादीनाम् ६।३ ।
स०-न वृद्धमिति अवृद्धम् (नञ्तत्पुरुषः)। कर्की आदिर्येषां ते कर्कादयः, न कादय इति अकादय:, तेषाम्-अकादीनाम् (बहुव्रीहिगर्भितनञ्तत्पुरुषः)।
अनु०-पूर्वपदम्, आदि:, उदात्त इति चानुवर्तते। अन्वयः-प्रस्थेऽकादीनाम् अवृद्धं पूर्वपदम् आदिरुदात्त:।
अर्थ:-प्रस्थ-शब्दे उत्तरपदे कादिवर्जितम् अवृद्धसंज्ञकं पूर्वपदमायुदात्तं भवति।
उदा०-इन्द्रस्य प्रस्थ इति इन्द्रप्रस्थ: । कुण्डप्रस्थ: । हृदप्रस्थः । सुवर्णप्रस्थः।
कर्की। मघी। मकरी। कर्कन्धू । शमी। करीर । कटुक। कुरल (कुवल)। बदर। इति कादयः ।।
आर्यभाषा: अर्थ-(प्रस्थे) प्रस्थ शब्द उत्तरपद होने पर (अकादीनाम्) कर्की आदि तथा (अवृद्धम्) वृद्धसंज्ञक शब्दों से भिन्न (पूर्वपदम्) पूर्वपद (आदिरुदात्त:) आधुदात्त होता है।
उदा०-इन्द्रप्रस्थः । इन्द्र का स्थान । कुण्डप्रस्थः । कुण्ड का स्थान। हृदप्रस्थ: । ह्रद का स्थान । सुवर्णप्रस्थः । सुवर्ण का स्थान (सोनीपत)।