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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-ईषत्कंडारः । यहां ईषत् और कडार शब्दों का ईषदकृता' (२।२।७) से तत्पुरुष समास है। ईषत्' शब्द फिषोऽन्तोदात्तः' (फिट० ११) से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से पूर्वपद में प्रकृतिस्वर से रहता है। विकल्प पक्ष में समासस्य' (६।१ ।२१७) से समास को अन्तोदात्त होता है-ईषत्कारः । ऐसे ही-ईषत्पिङ्गलः । ईषत्पिङ्गलः। प्रकृतिस्वरविकल्प:
(५५) हिरण्यपरिमाणं धने।५५ । प०वि०-हिरण्यपरिमाणम् १।१ धने ७।१।
स०-हिरण्यं च तत् परिमाणमिति हिरण्यपरिमाणम् (कर्मधारयतत्पुरुषः)।
अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, अन्यतरस्यामिति चानुवर्तते । अन्वय:-धने हिरण्यपरिमाणं पूर्वपदमन्यतरस्यां प्रकृत्या।
अर्थ:-धनशब्दे उत्तरपदे हिरण्यपरिमाणवाचि पूर्वपदं विकल्पेन प्रकृतिस्वरं भवति।
उदा०-द्वौ सुवर्णौ परिमाणमस्येति द्विसुवर्णम्, द्विसुवर्णं च तद् धनमिति द्विसुवर्णधनम्, द्विसुवर्णधनम्।
आर्यभाषा: अर्थ-(धने) धन शब्द उत्तरपद होने पर (हिरण्यपरिमाणम्) सुवर्णपरिवाणवाची (पूर्वपदम्) पूर्वपद (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है। ____उदा०-द्विसुवर्णधनम् । द्विसुवर्णधनम् । दो सुवर्ण-परिमाणवाला धन। सुवर्ण-एक कर्ष १० गुंजा (रत्ती)। द्विसुवर्ण=२० रत्ती।
सिद्धि-द्विसुवर्णधनम् । यहां द्विसुवर्ण और धन शब्दों का विशेषणं विशेष्येण बहुलम् (२।१।५६) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। द्विसुवर्ण' शब्द तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च' (२।१।५१) से तद्धितार्थ में द्विगुतत्पुरुष समास है। यहां तदस्य परिमाणम् (५।१।५७) से ठञ्' प्रत्यय और 'अध्यर्धपूर्वाद्विगोलुंगसंज्ञायाम्' (५।१।२८) से उसका लुक् होता है। द्विसुवर्ण' शब्द 'समासस्य' (६।१।२१७) से अन्तोदात्त है। यह हिरण्य परिमाणवाची शब्द इस सूत्र से धन शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। विकल्प पक्ष में समासस्य' (६।१ ।२१७) से समास को अन्तोदात्त स्वर होता है-द्विसुवर्णधनम् ।