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________________ २७१ षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः अर्थ:- कुरुगार्हपत-रिक्तगुरु-असूतजरती-अश्लीलदृढरूपा-पारेवडवातैतिलकद्रू-पण्यकम्बलानां दासीभाराणाम् दासीभारादीनां च शब्दानां पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति। ___उदा०- (कुरुगार्हपतम्) कुरूणां गार्हपतमिति कुरुगार्हपतम् । (रिक्तगुरु:) रिक्तो गुरुरिति रिक्तगुरु: । (असूतजरती) असूता जरतीति असंतजरती। (अश्लीलदृढरूपा) अश्लीला दृढरूपेति अश्लीलदृढरूपा। पारेवडवा इवेति पारेवडवा। (तैतिलकद्रू:) तैतिलानां कदूरिति तैतिलकद्रूः । (पण्यकम्बल:) पण्य: कम्बल इति पण्यकम्बल: । (दासीभारादय:) दास्या भार इति दासीभारः । देवानां हूतिरिति देवहूति:, इत्यादिकम् । ____ दासीभारः । देवहूति: । देवजूति: । देवसूति: । देवनीति: . वसुनीतिः । ओषधिः। चन्द्रमा:। अविहितलक्षण: पूर्वपदप्रकृतिस्वरो दासीभारादिषु द्रष्टव्य: ।। . आर्यभाषा: अर्थ- (कुरुगार्हपत०दासीभाराणाम्) कुरुगार्हपत, रिक्तगुरु, असूतजरती, अश्लीलदृढरूपा, पारेवडवा, तैतिलकदू, पण्यकम्बल, दासीभार आदि शब्दों का (च) भी (पूर्वपदम्) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है। ___ उदा०-कुरुगार्हपतम् । कुरु जनपद के गृहपतियों की संस्था । रिक्तगुरु: । खाली रहने पर भी भारी। असंतजरती। सन्तानोत्पत्ति न होने पर भी वृद्धा। अश्लीलदढरूपा। अश्लील-अ श्रील-अर्थात् श्री (कान्ति) से रहित होने पर भी स्थिर रूपवाली संस्थानमात्र से सुन्दर । पारेवंडवा। पार उतारने में वडवा-घोड़ी के समान। तैतिलकद्रः । तैतिल तितिली के पुत्रों/छात्रों की माता। पण्यकम्बलः । बिकाऊ कम्बल। दासीभारः । दासी के द्वारा वहन करने योग्य बोझ। देवहतिः । देवों का आहान. इत्यादि। सिद्धि-(१) कुरुगार्हपतम् । यहां कुरु और गार्हपत शब्दों का षष्ठी (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। कुरु' शब्द कृमोरुच्च' (उणा० ११२४) से कु-प्रत्ययान्त है। अत: यह प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से पूर्वपद में प्रकृतिस्वर से रहता है। (२) रिक्तगुरुः । यहां रिक्त और गुरु शब्दों का विशेषणं विशेष्येण बहुलम् (२।१।५६) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। 'रिक्त' शब्द रिक्ते विभाषा' (६।१।२०२) से विकल्प से आधुदात्त और अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से पूर्वपद में प्रकृतिस्वर से रहता है। (३) असूतजरती। यहां असूता और जरती शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय तत्पुरुष समास है। ‘असूता' शब्द में नञ्तत्पुरुष समास है-न सूतेति असूता । नञ्' शब्द 'निपाता आधुदात्ता:' (फिट्० ४।१२) से आधुदात्त है, अत: असूता शब्द भी आधुदात्त हुआ। यह इस सूत्र से पूर्वपद में प्रकृतिस्वर से रहता है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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