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पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम्
(४) अश्लीलदृढरूपा। यहां अश्लीला और दृढरूपा शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय तत्पुरुष समास है । 'अश्लीला' शब्द में नञ्तत्पुरुष समास है-न श्रीलेति । अश्रीला = अश्लीला (रिफस्य लत्वम्) । 'नञ्' शब्द पूर्वव आद्युदात्त है, अतः अश्लीला शब्द भी आद्युदात्त हुआ। यह इस सूत्र से पूर्वपद में प्रकृतिस्वर से रहता है।
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(५) पारेवडवा । यहां पार और वडवा शब्दों का इसी निपातन से इव-अर्थ में समास है तथा सप्तमी विभक्ति का लोप नहीं होता है। पार' शब्द 'घृतादीनां चं' (फिट्ट्ठ १/२१) से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से पूर्वपद में प्रकृतिस्वर से रहता है।
(६) तैति॒लके: । यहां तैतिल और कद्रू शब्दों का षष्ठी' (२ 121८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। तैतिल' शब्द में 'तस्यापत्यम्' (४ 1१ 1९२ ) से 'अण्' प्रत्यय है- तितिलिनोऽपत्यम् तैतिल: । अत: यह प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है । यह इस सूत्र से पूर्वपद में प्रकृतिस्वर से रहता है।
(७) पर्ण्यकम्बलः । यहां पण्य और कम्बल शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय तत्पुरुष समास है। 'पण्य' शब्द 'अवद्यपण्यवर्या गर्ह्यपणितव्यानिरोधेषु' (३ । १ ।१०१) से यत्प्रत्ययान्त निपातित है, अत: यह 'यतोऽनाव:' ( ६ /१/२०७ ) से आद्युदात्त है । यह इस सूत्र से पूर्वपद में प्रकृतिस्वर से रहता है।
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(८) दासीभार:। यहां दासी और भार शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है 'दासी' शब्द में 'दंसेष्टटनौ न आ चं' 'रणा० ५ 120 ) से 'ट' प्रत्यय और नकार को आकार आदेश होकर 'दास' शब्द बनता है. स्त्रीत्व - विवक्षा में 'टिड्ढाणञ्о' (४ 1१1१५) से ङीप् प्रत्यय है। अत: यह 'अनुदात्तस्य च यत्रोदात्तलोप:' ( ६ । १ । १५५) से उदात्तनिवृत्ति स्वर से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से पूर्वपद में प्रकृतिस्वर से रहता है।
(९) देवहूति: । यहां देव और हूति शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। देव' शब्द 'नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यचः' (३ 1१) से अच्-प्रत्ययान्त है। प्रत्यय के चित् होने से यह 'चित:' (६ |१|१५६ ) से अन्तोदात्त है । यह इस सूत्र से पूर्वपद में प्रकृतिस्वर से रहता है।
प्रकृतिस्वरः
(४३) चर्थी तदर्थे । ४३ ।
प०वि० - चतुर्थी १।१ तद ७ । १ ।
स०-तस्मै इदमिति तदर्थम्, तस्मिन्-तदर्थे। तदर्थम्=चतुर्थ्यन्तार्थमित्यर्थः
(चतुर्थीतत्पुरुषः) ।
अनु० - प्रकृत्या, पूर्वपदमिति चानुवर्तते ।