________________
षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः
२६६ उपपद ला आदाने (अदा०प०) धातु से 'आतोऽनुपसर्गे कः' (३।२।३) से क' प्रत्यय है। तोर्लि' (८।४।५९) से तकार को परसवर्ण लकार आदेश होता है। पुन: 'हस्वे (५।३।८६) से ह्रस्व अर्थ में तद्धित 'क' प्रत्यय है। अत: यह प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से वैश्वदेव शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है।
(२) महावैश्वदेवम् । यहां महत् और वैश्वदेव शब्दों का 'सन्महत्परमोत्तमोत्कृष्टा: पूज्यमानैः' (२।१।६० से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। आन्महत: समानाधिकरणजातीययो:' (६।३।४५) से महत् को आत्त्व होता है। ‘महत्' शब्द पूर्ववत् अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से वैश्वदेव शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। प्रकृतिस्वरः
(४०) उष्ट्र: सादिवाम्योः ।४०। प०वि०-उष्ट्र: ११ सादि-वाम्यो: ७।२।
स०-सादिश्च वामी च ते सादिवाम्यौ, तयो:-सादिवाम्यो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदमिति चानुवर्तते । अन्वयः-सादिवाम्योरुष्ट्र: पूर्वपदं प्रकृत्या । अर्थ:-सादिवाम्योरुत्तरपदयोरुष्ट्रशब्द: पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति ।
उदा०- (साढि:) उष्ट्रस्य सादिरिति उष्ट्रसादि: । उष्ट्रसारथिरित्यर्थः । (वामी) उष्ट्रोऽयं वामीव इति उष्ट्रवामी । वामी-वडवा।
आर्यभाषा: अर्थ-(सादिवाम्योः) सादि और वामी शब्द उत्तरपद होने पर (उष्ट्र:) उष्ट्र (पूर्वपदम्) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है।
उदा०-(साढि) उष्ट्रसादिः । ऊंट का सारथि। (वामी) उष्ट्रवामी । वामी घोड़ी के समान शीघ्रगामी ऊंट।
सिद्धि-(१) उष्ट्रसादिः । यहां उष्ट्र और सादि शब्दों का षष्ठी' (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। 'उष्ट्र' शब्द में 'उषिखनिभ्यां कित्' (उणा० ४।१६२) से 'उष दाहे' धातु से 'ष्ट्रन्' प्रत्यय है। प्रत्यय के नित् होने से यह नित्यादिनित्यम्' (७।२।१०२) से आधुदात्त है। यह इस सूत्र से सादि' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है।
(२) उष्ट्रवामी। यहां उष्ट्र और वामी शब्दों का उपमितं व्याघ्रादिभि: सामान्याप्रयोगे (२।१।५६) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। व्याघ्रादि आकृतिगण है। उष्ट्र शब्द पूर्ववत् आधुदात्त है। यह इस सूत्र से वामी उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है।