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________________ षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः २६७ (४) पैल॒श्या॑पर्णेया: । यहां पैल और श्यापर्णेय शब्दों का पूर्ववत् द्वन्द्वसमास है। पैल शब्द में पीलाया वा' (४ । १ । ११८) से अपत्य अर्थ में 'अण्' प्रत्यय है। उससे 'अणो द्व्यचः' (४ 1१1९५६ ) से युवापत्य अर्थ में फिञ् प्रत्यय होकर उसका पैलादिभ्यश्चं ' (२1४148) से लुक् हो जाता है। इस प्रकार 'पैल' शब्द प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से द्वन्द्वसमास में प्रकृतिस्वर से रहता है। 'श्यापर्ण' शब्द के विदादि गण में पठित होने से 'अनृष्यानन्तर्ये विदादिभ्योऽञ्' (४।१।१०४) से गोत्रापत्य अर्थ में 'अञ्' प्रत्यय और उससे स्त्रीत्व - विवक्षा में 'टिड्ढाणञ्०' (४ 1१1१५ ) से ङीप् प्रत्यय करने पर 'श्यापर्णी' शब्द सिद्ध होता है। इससे 'स्त्रीभ्यो ढक्' (४|१|१२० ) से युवापत्य अर्थ में ढक् प्रत्यय होकर 'श्यापर्णेय' शब्द बनता है । प्रकृतिस्वरः (३८) महान् व्रीह्यपराह्णगृष्टीष्वासजाबालभारभारतहैलिहिलरौरवप्रवृद्धेषु । ३८ । प०वि०- महान् १।१ व्रीहि- अपराह्ण- गृष्टि- इष्वास- जाबाल-भारभारत- हैलिहिल- रौरव-प्रवृद्धेषु ७ । ३ । स०-व्रीहिश्च अपराह्णश्च गृष्टिश्च इष्वासश्च जाबालश्च भारश्च भारतश्च हैलिहिलश्च रौरवश्च प्रवृद्धश्च ते - व्रीहि० प्रवृद्धा:, तेषु - व्रीहि० प्रवृद्धेषु (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु०-प्रकृत्य पूर्वपदमिति चानुवर्तते । 'द्वन्द्वे' इति च निवृत्तम् । अन्वयः-व्रीह्णा राह्ण॰प्रवृद्धेषु महान् पूर्वपदं प्रकृत्या। अर्थः-व्रीह्यपराह्णगृष्टीष्वासजाबालभारभारतहैलिहिलरौरवप्रवृद्धेषु उत्तरपदेषु महानिति पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति । I उदा०-महाँश्चासौ व्रीहिरिति - म॒हाव्रीहिः । म॒हाप॑रा॒ह्णः । म॒हागृ॑ष्टिः । महेष्वासः । महाबल: । महाभारः । महाभरतः । महार्हैलिहिल: । महारौरवः । म॒हाप्र॑वृद्धः । आर्यभाषाः अर्थ- (व्रीह्यपराण० प्रवृद्धेषु) व्रीहि, अपराह्ण, गृष्टि, इष्वास, जाबाल, भार, भारत, हैलिहिल, रौरव, प्रवृद्ध शब्दों के उत्तरपद होने पर ( महान् ) महान् यह (पूर्वपदम् ) पूर्वपद (प्रकृत्या ) प्रकृतिस्वर से रहता है। उदा० - महाव्रीहिः । चावल विशेष की संज्ञा । महापेरा:: । अपराह्ण का अन्तिम भाग। म॒हागृष्टिः। एक बार ब्याई हुई बड़ी गाय । महेष्वासः । बहुत बड़ा धनुर्धर ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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