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________________ षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः २६५ उदा० - आपिशलपाणिनीया: । श्री अपिशलि और श्री पाणिनि आचार्य के अन्तेवासी (शिष्य) । पाणिनीयरौढीया: । श्री पाणिनि और श्री रौढि आचार्य के अन्तेवासी । रौढीयकोशकृत्स्ना: । श्री रौढि और श्री काशकृत्स्न आचार्य के अन्तेवासी। सिद्धि-आपिशलपाणिनीया: । यहां आपिशल और पाणिनीय शब्दों का 'चार्थे द्वन्द्व:' (२।२।२९) से द्वन्द्वसमास है । अपिशलस्यापत्यम् - आपिशलिः । अपि का अपत्य (पुत्र) 'आपिशलि' कहाता है। यहां 'अत इञ्' (४ 1१1९५) से अपत्य अर्थ मं 'इञ्' प्रत्यय है। आपिशलिना प्रोक्तम्- आपिशलम् । आपिशलि आचार्य के द्वारा प्रोक्त ग्रन्थ 'आपिशल' कहाता है। यहां तेन प्रोक्तम्' ( ४ | ३ | १०१ ) से प्रोक्त अर्थ में 'अण्' प्रत्यय है। आपिशलमधीयते ये तेऽन्तेवासिन आपिशला: । आपिशल ग्रन्थ को जो पढ़ते हैं वे अन्तेवासी भी 'आपिशल' कहाते हैं। यहां 'प्रोक्ताल्लुक्' (४/२/६३) से अध्येता अर्थ में विहित अण् प्रत्यय का लुक् हो जाता है। इस प्रकार 'आपिशल' शब्द आचार्य-उपसर्जनीभूत अन्तेवासी वाची है। ऐसे ही - पाणिनिना प्रोक्तम्- पाणिनीयम् । पाणिनीयमधीयते - पाणिनीयाः । पाणिनि आचार्य के द्वारा प्रोक्त ग्रन्थ (अष्टाध्यायी आदि) पाणिनीय कहाते हैं। यहां 'तेन प्रोक्तम्' ( ४ | ३ |१०१ ) से यथाविहित 'छ' प्रत्यय है । तत्पश्चात् 'प्रोक्ताल्लुक्' (४/२/६३) से अध्येता अर्थ में विहित प्रत्यय का लुक् हो जाता है। इस प्रकार 'पाणिनीय' शब्द आचार्य-उपसर्जनीभूत अन्तेवासी वाची है। इन उक्त 'आपिशल' और पाणिनीय शब्दों के द्वन्द्वरूम में 'आपिशल' पूर्वपद प्रकृतिस्वर से रहता है। 'आपिशल' शब्द प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। ऐसे ही - पाणिनीयरौढीयाः, रौढीयकोशकृत्स्नाः । 'आपिशलपाणिनीया:' आदि में आपिश‍ और पाणिनीय शब्द उनके द्वारा प्रोक्त ग्रन्थों के अध्येता अन्तेवासी (शिष्य) अर्थों में प्रधान और आचार्य अर्थ में उपसर्जन (गौण) हैं। प्रकृतिस्वर: (३७) कार्तकौजपादयश्च ॥ ३७ ॥ प०वि० - कार्तकौजप-3 [-आदय: १ । ३ च अव्ययपदम् । स०-कार्तकौजप आदिर्येषां ते - कार्तकौजपादय: (बहुव्रीहि: ) : अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, द्वन्द्वे इति चानुवर्तते । अन्वयः-कार्तकौजपादीनां च द्वन्द्वे पूर्वपदं प्रकृत्या । अर्थः-कार्तकौजपादीनां च शब्दानां द्वन्द्वे समासे पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति । I उदा० - कार्तश्च कौजपश्च तौ - कार्तकौजपौ । सावर्णिश्च माण्डूकेयश्च तौ साव॑र्णिमाण्डूकेयौ। अवन्तयश्च अश्मकाश्च ते - अ॒व॒न्त्य॑श्मकाः । पैलाश्च श्यापर्णेयाश्च ते-पे॒लश्या॑प॒र्णेयाः, इत्यादिकम् ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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