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________________ २६३ षष्टाध्यायस्य द्वितीयः पादः आर्यभाषा: अर्थ-(अन्धकवृष्णिषु) अन्धक और वृष्णि वंश में विद्यमान (राजन्यबहुवचने) राजन्यवाची बहुवचनान्त द्वन्द्वसमास में (पूर्वपदम्) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है। उदा०-(अन्धक) श्वाफलकचैत्रका: । अन्धकवंशीय श्वफलक और चित्रक के सन्तान। चैत्रकरोधका: । अन्धकवंशीय चित्रक और रोधक के सन्तान। (वृष्णि) शिनिवासुदेवाः । वृष्णिवंशीय शिनि और वसुदेव के सन्तान। शिनि के सन्तान अभेदोपचार से 'शिनि' कहाते हैं। सिद्धि-(१) श्वाफलकचैत्रका: । यहां श्वाफलक और चैत्रक शब्दों का चार्थे द्वन्द्वः' (२।२।२९) से द्वन्द्वसमास है। श्वाफलक और चैत्रक शब्दों में ऋष्यन्धकवृष्णिकुरुभ्यश्च' (४।१।११४) से अपत्य अर्थ में 'अण्' प्रत्यय है। अत: अण्-प्रत्ययान्त श्वाफलक' शब्द प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। यह पूर्वपद इस सूत्र से अन्धकवंश में वर्तमान राजन्यवाची बहुवचनान्त शब्दों के द्वन्द्वसमास में प्रकृतिस्वर से रहता है। ऐसे ही-चैत्रकरोधकाः । (२) शिनिवासुदेवा: । यहां शिनि और वासुदेव शब्दों का पूर्ववत् द्वन्द्वसमास है। शिनि शब्द आधुदात्त है। यह पूर्वपद इस सूत्र से वृष्णिवंश में वर्तमान राजन्यवाची बहुवचनान्त शब्दों के द्वन्द्व समास में प्रकृतिस्वर से रहता है। विशेष: महाभारत और कौटिल्य दोनों के अनुसार अन्धक-वृष्णि संघ-राज्य था। पाणिनि के अनुसार अन्धक-वृष्णिसंघ में राजन्यों द्वारा शासन की व्यवस्था थी। इसमें दूसरे संघों की भांति कुलों का शासन था। प्रत्येक कुल का अधिपति राजा कहलाता था। उन्हीं के अपत्यों की संज्ञा राजन्य थी। अक्रूर, श्वाफलक (चैत्रक) अन्धकों के और (शिनि कृष्ण (वासुदेव), बलराम, नकुल आदि वृष्णियों के नेता थे (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० ४६४)। प्रकृतिस्वर: (३५) संख्या।३५। प०वि०-संख्या ११। अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, द्वन्द्वे इति चानुवर्तते। अन्वय:-द्वन्द्वे संख्या पूर्वपदं प्रकृत्या। अर्थ:-द्वन्द्वे समासे संख्यावाचि पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति । उदा०-एकश्च दश चेति एकादश। द्वौ च दश चेति द्वादश । त्रयश्च दश चेति त्रयोदश। आर्यभाषा: अर्थ- (द्वन्द्वे) द्वन्द्वसमास में (संख्या) संख्यावाची (पूर्वपदम्) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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