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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी प्रवचनम् (३) उपेपूर्वाह्णम् । यहां उप और पूर्वाह्ण शब्दों का 'अव्ययं विभक्ति०' (२/१/६ ) से समीप अर्थ में अव्ययीभाव समास है। 'उप' शब्द पूर्ववत् आद्युदात्त है। यह इस सूत्र से अहरवयववाची 'पूर्वाह्ण' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। ऐसे ही उपोपराह्णम्, उपेपूर्वरात्रम्, उपोपररात्रम् । २६२ (४) अपेत्रिगर्तम् । यहां अप और वर्ज्यमानवाची त्रिगर्त' शब्दों का 'अपपरिबहिरञ्चवः पञ्चम्याः' (२।१।१२) से अव्ययीभाव समास है। 'अप' शब्द पूर्ववत् आद्युदात्त है। यह वर्ज्यमानवाची त्रिगर्त' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। ऐसे ही अपेसौवीरम्, अपेसार्वसेनि । विशेष : (१) त्रिगर्त-रावी, व्यास और सतलुज इन तीन नदी घाटियों के बीच का प्रदेश त्रिगर्त (कुल्लू कांगड़ा) कहलाता था। (२) सौवीर - वर्तमानकाल में सिन्धु प्रान्त या सिन्ध नद के निचले काठे का नाम सौवीर (सिन्ध बहावलपुर ) जनपद था इसकी राजधानी रौरुव (संस्कृत-नाम रौरुक) थी। इसका वर्तमान नाम रोड़ी है। (३) सार्वसेनि - बीकानेर का उत्तरी भूभाग। यह ऐसे लोगों का संघ था जो कि सब सैनिक थे (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० ४६० ) । प्रकृतिस्वर: (३४) राजन्यबहुवचनद्वन्द्वेऽन्धकवृष्णिषु । ३४ । प०वि०-राजन्य-बहुवचन - द्वन्द्वे ७।१ अन्धक - वृष्णिषु ७ । ३ । स०-राजन्यानि च तानि बहुवचनानीति राजन्यबहुवचनानि तेषाम्राजन्यबहुवचनानाम्, राजन्यबहुवचनानां द्वन्द्व इति राजन्यबहुवचनद्वन्द्वः, तस्मिन्-राजन्यबहुवचनद्वन्द्वे ( कर्मधारयगर्भितषष्ठीतत्पुरुषः) । अन्धकारच वृष्णयश्च ते - अन्धकवृष्णय:, तेषु - अन्धकवृष्णिषु (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु० - प्रकृत्या, पूर्वपदमिति चानुवर्तते । अन्वयः - अन्धकवृष्णिषु राजन्यबहुवचनद्वन्द्वे पूर्वपदं प्रकृत्या । अर्थ:-अन्धकेषु वृष्णिषु च वर्तमानानां राजन्यवाचिनां बहुवचनान्तानां द्वन्द्वे समासे पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति । उदा०- ( अन्धकः) श्वफलकस्यापत्यम् - श्वाफलकः, चित्रकस्यापत्यम्चैत्रक: । श्वाफलकाश्च चैत्रकाश्च ते - श्वाफलकचैत्रका: । चैत्रकाश्च रोधकाश्च ते-चैत्र॒करो॑धका: । (वृष्णय: ) शिनयश्च वासुदेवाश्च ते - शिनि॑वासुदेवाः ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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