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________________ ' षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः २४७ अर्थ:-भूतपूर्ववाचिनि तत्पुरुष समासे पूर्व-शब्दे उत्तरपदे पूर्वपदं प्रकृत्या भवति। उदा०-आढ्यो भूतपूर्व:-आढ्यपूर्वः । दर्शनीयपूर्व: । सुकुमारपूर्वः। आर्यभाषा: अर्थ-(भूतपूर्वे) भूतपूर्ववाची (तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (पूर्वे) पूर्व-शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है। ___उदा०-आढ्यपूर्व: । भूतपूर्व आढ्य=धनवान् । दर्शनीयपूर्वः । भूतपूर्व दर्शनीय देखने योग्य । सुकुमारपूर्वः । भूतपूर्व अत्यन्त कोमल। सिद्धि-(१) आढ्यपूर्वः । यहां आढ्य और भूतपूर्व शब्दों का विशेषणं विशेष्येण बहुलम्' (२।१।५७) से अथवा मयूरव्यंसकादयश्च' (२।१।७२) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। समास में अर्थ के गम्यमान होने से 'भूत' शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है। जैसे-दनोपसिक्त ओदन:, दध्योदन:, यहां उपसिक्त शब्द का प्रयोग नहीं होता है अथवा समासवृत्ति में पूर्व' शब्द भूतपूर्व अर्थ में है। 'आढ्य' शब्द में आपूर्वक 'ध्यै चिन्तायाम् (भ्वा०प०) धातु से वा०- 'घनर्थे कविधानम् (३।३।५८) से 'क' प्रत्यय और पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम् (६।३।१०८) से धकार को ढकार आदेश है। तत्रैत्येनं ध्यायन्तीत्यादयः। यह ‘आढ्य' शब्द 'थाथघक्ताजबित्रकाणाम् (६ ।२।१४४) से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से भूतपूर्ववाची तत्पुरुष समास में पूर्व-शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। (२) दर्शनीयपूर्व: । यहां दर्शनीय और भूतपूर्व शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय समास है। दर्शनीय शब्द में 'तव्यत्तव्यानीयरः' (३।११९६) से अनीयर् प्रत्यय है। प्रत्यय के रित् होने से 'उपोत्तमं रिति' (६।१।२११) से दर्शनीय' शब्द का उपोत्तम अच् उदात्त है। यह इस सूत्र से पूर्व-शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। (३) सुकुमारपूर्वः । यहां सुकुमार और भूतपूर्व शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय तत्पुरुष समास है। सुकुमार' शब्द नसुभ्याम्' (६।२।१७२) से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से पूर्व-शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। प्रकृतिस्वर:(२३) सविधसनीडसमर्यादसवेशसदेशेषु सामीप्ये।२३। प०वि०-सविध-सनीड-समर्याद-सवेश-सदेशेषु ७।३ सामीप्ये ७।१। स०-सविधं च सनीडं च समर्यादं च सवेशं च सदेशं च तानि सविध०सदेशानि, तेषु-सविध०सदेशेषु (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। समीपस्य भाव: सामीप्यम्, तस्मिन्-सामीप्ये। अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, तत्पुरुषे इति चानुवर्तते ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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