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________________ २४८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अन्वय:-सामीप्ये तत्पुरुषे सविधसनीडसमर्यादसवेशसदेशेषु पूर्वपदं प्रकृत्या। अर्थ:-सामीप्यवाचिनि तत्पुरुष समासे सविधसनीडसमर्यादसवेशसदेशेषु उत्तरपदेषु पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति। उदा०-(सविधम्) मद्राणां सविधमिति मद्रसविधम् । गान्धारिसविधम् । काश्मीरसविधम्। (सनीडम्) मद्राणां सनीडमिति मद्रसैनीडम्। गान्धारिसनीडम्। काश्मीरसनीडम्। (समर्यादम्) मद्राणां समर्यादमिति मद्रसमर्यादम्। गान्धारिसमर्यादम्। काश्मीरसमर्यादम्। (सदेशम्) मद्राणां सदेशमिति मद्रसदेशम् । गान्धारिसदेशम् । काश्मीरसदेशम्। आर्यभाषा: अर्थ-(सामीप्ये) समीपतावाची (तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (सविध०सदेशेषु) सविध, सनीड, समर्याद, सवेश, सदेश शब्दों के उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है। ___ उदा०-(सविध) मद्रसविधम् । मद्र के समीप। गान्धारिसविधम् । गान्धारि के समीप। काश्मीरसविधम् । काश्मीर के समीप। (सनीड) मद्रसैनीडम् । मद्र के समीप । गान्धारिसनीडम् । गान्धारि के समीप । काश्मीरसनीडम् । काश्मीर के समीप। (समर्याद) मद्रसमर्यादम् । मद्र के समीप । गान्धारिसमर्यादम् । गान्धारि के समीप। काश्मीरसमर्यादम्। काश्मीर के समीप। (सदेश) मद्रसदेशम् । मद्र के समीप। गान्धारिसदेशम् । गान्धारि के समीप। काश्मीरसदेशम् । काश्मीर के समीप। सिद्धि-(१) मद्रसविधम् । यहां मद्र और सविध शब्दों का षष्ठी (२/२८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। सविध’ शब्द में तेन सहेति तुल्ययोगे' (२।२।२८) से बहुव्रीहि समास और वोपसर्जनस्य' (६।३।८१) से 'सह' के स्थान में 'स' आदेश होता है। ऐसे ही 'सनीड' आदि शब्दों में भी बहुव्रीहि समास जानें। सविध' आदि शब्दों की सह विधयेति सविधम्' इत्यादि केवल व्युत्पत्तिमात्र है। ये शब्द-समुदाय वस्तुत: समीपवाची हैं। मद्र' शब्द रक्-प्रत्ययान्त होने से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से सविध शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। ऐसे ही-मद्रसेनीडम् आदि। (२) गान्धारिसविधम् । यहां गान्धारि और सविध शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। गान्धारि शब्द कर्दमादिगण में पठित है इसे 'कर्दमादीनां वा' (फिट० ३।१०) से आधुदात्त अथवा द्वितीय अच् उदात्त होता है। यह इस सूत्र से सविध शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। ऐसे ही-गान्धारिसनीडम् आदि। (३) काश्मीरेसविधम् । यहां काश्मीर और सविध शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। काश्मीर शब्द 'पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम्' (६।३।१०९) से मध्योदात्त है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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