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________________ २३८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-(१) मद्राणिजः । मद्र+सुप्+वाणिज+सु। मद्रवाणिज+सु। मद्रवाणिजः । यहां गन्तव्यवाची मद्र और वाणिज शब्दों का सप्तमी शौण्डैः' (२।१।३९) से सप्तमीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से वाणिज' शब्द उत्तरपद होने पर गन्तव्यवाची मद्र' शब्द प्रकृतिस्वर से रहता है। 'मद्र' शब्द 'स्फायितञ्चि०' (उणा० २।१३) से रक्-प्रत्ययान्त होने से प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। (२) काश्मीरवाणिजः । यहां गन्तव्यवाची काश्मीर और वाणिज शब्दों का पूर्ववत् सप्तमीतत्पुरुष समास है। काश्मीर' शब्द 'पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम' (६।३।१०८) से मध्योदात्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है। (३) गान्धारिवाणिजः । यहां गन्तव्यवाची गान्धारि और वाणिज शब्दों का पूर्ववत् सप्तमीतत्पुरुष समास है। 'गान्धारि' शब्द 'कर्दमादीनां च' (फिट० ३।१०) से आधुदात्त अथवा मध्योदात्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है। मध्योदात्त पक्ष में-गान्धारिवाणिजः । (४) गोवाणिजः । यहां पण्यवाची गो और वाणिज शब्दों का षष्ठी' (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। 'गो' शब्द आधुदात्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है। (५) अश्ववाणिजः । यहां पण्यवाची अश्व और वाणिज शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। 'अश्व' शब्द आधुदात्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है। पण्य क्रय-विक्रय के योग्य पदार्थ । प्रकृतिस्वर: (१४) मात्रोपज्ञोपक्रमच्छाये नपुंसके।१४। प०वि०-मात्र-उपज्ञा-उपक्रम-छाये ७१ नपुंसके ७१। स०-मात्रं च उपज्ञा च उपक्रमश्च छाया च एतेषां समाहारो मात्रोपज्ञोपक्रमच्छायम्, तस्मिन्-मात्रोपज्ञोपक्रमच्छाये (समाहारद्वन्द्व:) । अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, तत्पुरुषे इति चानुवर्तते। अन्वय:-नपुंसके तत्पुरुषे मात्रोपज्ञोपक्रमच्छाये पूर्वपदं प्रकृत्या। अर्थ:-नपुंसकवाचिनि तत्पुरुष समासे मात्र-उपज्ञा-उपक्रम-छायासु उत्तरपदेषु पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति। उदा०-(मात्रम्) भिक्षामात्रं न ददाति याचित: । समुद्रात्रं न सरोऽस्ति किञ्चन। (उपज्ञा) पाणिनोपज्ञम् अकालकं व्याकरणम्। व्याड्युपज्ञं दशहुष्करणम् । आपिशल्युपज्ञं गुरुलाघवम्। (उपक्रम:) आद्योपक्रमं प्रासाद: । दर्शनीयोपक्रमम्। सुकुमारोपक्रमम् । नन्दोपक्रमाणि मानानि। (छाया) इर्षुच्छायम् । धनुश्छायम्।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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