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________________ षष्टाध्यायस्य द्वितीयः पादः २३७ सिद्धि-(१) प्राच्यसप्तशमः। यहां प्राच्य और प्रमाणवाची द्विगुसंज्ञक सप्तशम' शब्दों का मयूरव्यंसकादयश्च' (२।१।७१) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। सप्तशम' शब्द में सप्तशमा: प्रमाणस्य' अर्थ में उत्पन्न मात्रच्' प्रत्यय का वा०-प्रमाणे लो द्विगोर्नित्यम् (५।२।३७) से नित्य लुक् होता है। 'सप्तशमा:' इस प्रमाणवाची द्विगुसंज्ञक शब्द की संख्यापूर्वो द्विगुः' (२।१।५१) से द्विगु संज्ञा है। इस सूत्र से प्रमाणवाची, द्विगुसंज्ञक सप्तशम' शब्द उत्तरपद होने पर प्राच्य' पूर्वपद प्रकृतिस्वर से रहता है। प्राच्य शब्द युप्रागपागुदप्रतीचो यत् (४।२।१००) से यत्-प्रत्ययान्त है और यतोऽनावः' (६।१।२०७) से आद्युदात्त है। (२) गान्धारिसप्तशमः । यहां गान्धारि और प्रमाणवाची, द्विगुसंज्ञक सप्तशम' शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारयतत्पुरुष समास है। गान्धारि' शब्द 'कर्दमादीनां च' (फिट० ३।१०) से आयुदात्त और विकल्पपक्ष में मध्योदात्त भी है-गान्धारिसप्तशमः । शेष कार्य पूर्ववत् है। ' प्रकृतिस्वरः (१३) गन्तव्यपण्यं वाणिजे।१३। प०वि०-गन्तव्य-पण्यम् ११ वाणिजे ७।१ । गन्तुमर्हम् गन्तव्यम् । पणितुमर्हम्=पण्यम् । स०-गन्तव्यं च पण्यं च एतयो: समाहार:-गन्तव्यपण्यम् (समाहारद्वन्द्वः)। अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, तत्पुरुषे इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत्पुरुष समासे वाणिज-शब्दे उत्तरपदे गन्तव्यवाचि पण्यवाचि च पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति। उदा०-(गन्तव्यम्) मद्रेषु वाणिज:-मद्राणिज: । काश्मीरवाणिजः । गान्धारिवाणिजः । मद्रादिषु जनपदेषु गत्वा व्यवहरन्तीत्यर्थः । (पण्यम्) गवां वाणिज:-गोवाणिज: । अश्ववाणिजः। आर्यभाषा: अर्थ- (तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (वाणिजे) वाणिज शब्द उत्तरपद होने पर (गन्तव्यपण्यम्) गन्तव्यवाची और पण्यवाची (पूर्वपदम्) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है। उदा०-(गन्तव्य) मद्राणिजः । मद्र जनपद में जाकर व्यापार करनेवाला। काश्मीरवाणिजः। काश्मीर जनपद में जाकर व्यापार करनेवाला। गान्धारिवाणिजः । गन्धार जनपद में जाकर व्यापार करनेवाला। (पण्य) गोवाणिज: । गौओं का व्यापारी। अश्ववाणिज: । घोड़ों का व्यापारी।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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