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________________ २३४ प्रकृतिस्वरः पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (१०) अध्वर्युकषाययोर्जातौ ॥ १० ॥ प०वि० - अध्वर्यु- कषाययोः ७ । २ जातौ ७ । १ । स०-अध्वर्युश्च कषायश्च तौ - अध्वर्युकषायौ, तयोः - अध्वर्युकषाययोः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु० - प्रकृत्या, पूर्वपदम्, तत्पुरुषे इति चानुवर्तते । अन्वयः- तत्पुरुषेऽध्वर्युकषाययो: पूर्वपदं प्रकृत्या, जातौ । अर्थः- तत्पुरुषे समासेऽध्वर्युकषाययोरुत्तरपदयोः पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति, जातौ गम्यमानायाम् । उदा०- (अध्वर्युः) कठश्चासावध्वर्युः क॒ठाध्व॑र्युः । कालापार्ध्वर्युः । प्राच्यध्वर्यु: । ( कषायः) सर्पिर्मण्डस्य कषायम् - सर्पिर्मण्डक॑षायम् । उमापुष्पक॑षायम् । दे॑व॒रि॒क॑कषायम् । आर्यभाषाः अर्थ- (तत्पुरुषे ) तत्पुरुष समास में (अध्वर्युकषाययोः) अध्वर्यु और कषाय शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम् ) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है (जाती) यदि वहां जाति अर्थ की प्रतीति हो । उदा०- - (अध्वर्यु) कुठार्ध्वर्युः । कठ जाति का अध्वर्यु (ऋत्विक्) । कालापार्ध्वर्युः । कालाप जाति का अध्वर्यु (ऋत्विक्) । प्राच्योध्वर्युः । प्राच्य भरत का अध्वर्यु । (कषाय ) स॒र्पर्म॒ण्डक॑षायम् । घृत की मांड के समान कसैला पदार्थ । उ॒मापुष्पक॑षायम् । हल्दी के फूल के समान कसैला पदार्थ । दौवारिककेषायम् । द्वारपाल के समान कसैले ( कड़वे ) स्वभाव का पुरुष । सिद्धि - (१) कठाध्वर्युः । कठ+सु+अध्वर्यु+सु । कठाध्वर्यु+सु । कठाध्वर्युः । यहां कठ और अध्वर्यु शब्दों का 'मयूरव्यंसकादयश्चं' (२1१1७१ ) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से अध्वर्यु शब्द उत्तरपद परे होने पर 'कठ' पूर्वपद जातिविशेष अर्थ अभिधेय में प्रकृतिस्वर से रहता है। 'कठ' शब्द 'नन्दिग्रहिपचादिभ्याल्युणिन्यचः ' (३ | १|१३४) से पचादि अच्-प्रत्ययान्त व्युत्पादित है । उस 'कठ' शब्द से 'कलापिवैशम्पायनान्तेवासिभ्यश्च' (४ | ३ | १०४ ) से प्रोक्त अर्थ में 'णिनि' प्रत्यय होता है और उसका 'कठचरकाल्लुक्' (४।३।१०७) से लुक् हो जाता है। इस प्रकार 'कठ' शब्द प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। (२) कालापाध्वर्युः । यहां कालाप और अध्वर्यु शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारयतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से अध्वर्यु शब्द उत्तरपद होने पर 'कालाप' पूर्वपद जाति अर्थ अभिधेय
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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