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________________ प्रकृतिस्वर: षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः (६) शारदे ऽनार्तवे । ६ । २३३ प०वि० - शारदे ७ । १ अनार्तवे ७ । १ । स०-ऋतौ भवम्-आर्तवम्, न आर्तवम् - अनार्तवम्, तस्मिन् -अनार्तवे (नञ्तत्पुरुषः) । अनु० - प्रकृत्या, पूर्वपदम्, तत्पुरुषे इति चानुवर्तते । अन्वयः-तत्पुरुषेऽनार्तवे शारदे पूर्वपदं प्रकृत्या । अर्थः-तत्पुरुषे समासेऽनार्तववाचिनि शारद - शब्दे उत्तरपदे पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति । उदा०-रज्जूद्धृतं च तच्छारदम्-रज्जु॑शारदम् उदकम् । दृषत्पिष्टाः शारदा:-दृषर्च्छारदा: सक्तवः । शारदशब्दोऽत्र प्रत्यग्रवाची, तस्य नित्यसमासोऽस्वपदविग्रहश्चेष्यते । सद्यो रज्जूद्धृतम् प्रत्यग्रम् = अभिनवम् उदकं रज्जुशारदमुच्यते । आर्यभाषाः अर्थ- (तत्पुरुषे ) तत्पुरुष समास में (अनार्तवे) आर्तव से भिन्न अर्थवाची (शारदे) शारद शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम् ) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है । उदा०- -रज्जु॑शारदम् उदकम् । अभी-अभी रस्सी से निकाला हुआ ताजा जल। दृषच्छोरदा: सक्तवः । दृषत्= पत्थर से ( चक्की में ) पिसे हुये ताजा सत्तू । सिद्धि- (१) रज्जु॑शारदम् । रज्जु+सु+शारद+सु । रज्जुशारद+सु। रज्जुशारदम् । यहां रज्जु और आर्तव अर्थ से भिन्न अर्थ में विद्यमान शारद शब्दों का 'मयूव्यंसकादयश्च' (२1१1७१) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। यह नित्य और अस्वपदविग्रही समास है । इस सूत्र 'से अनार्तववाची 'शारद' शब्द उत्तरपद होने पर 'रज्जु' पूर्वपद प्रकृतिस्वर से रहता है। 'रज्जु' शब्द 'सृजे: सुम् च' (उणा० १1१५ ) से उ-प्रत्ययान्त है और वहां नित् की अनुवृत्ति से नित्स्वर से आद्युदात्त है। यहां शारद अभिनववाची है, आर्तववाची नहीं। आर्तव= ऋतुसम्बन्धी । (२) दृषच्छारदा:। यहां दृषत् और अनार्तववाची शारद शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से अनार्तववाची शारद शब्द उत्तरपद होने पर 'दृषत्' पूर्ववत् प्रकृतिस्वर से रहता है । 'दृषत्' शब्द 'दृणातेः षुग्घ्रस्वश्च (उणा० १।१३१) से अदिप्रत्ययान्त होने से प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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