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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनुशासन करते हैं । ते दीध्यते । वे सब दीप्ति/ देवन (क्रीडा आदि) करते हैं । स दीध्यत् । वह दीप्ति/ देवन करता हुआ। ते वेव्यते । वे सब गति आदि करते हैं। सिद्धि- (१) जक्षति । जक्ष्+लट् । जक्ष्+झि । जक्ष्+शप् + झि । जक्ष् +0+अत् इ। जक्षति । ८ यहां 'जक्ष भक्षहसनयो:' ( अदा०प०) धातु से 'लट्' प्रत्यय, 'तिप्तस्झि०' ( ३/४ /७४) से ल के स्थान में झि - आदेश, 'कर्तरि शप्' (३ । १ । ६८) से शप् विकरण प्रत्यय और 'अदिप्रभृतिभ्यः शप:' ( २/४ /७२ ) से शप् का लुक् होता है। 'जन्' धातु की इस सूत्र से अभ्यस्त संज्ञा होने से 'अदभ्यस्तात्' (७ 1१1४ ) से 'झि' के झकार को अत् आदेश होता है। ऐसे ही- जाग्रति, चकासति, शासति । (२) दीध्यते । दीधीङ्+लट् । दीधी+झ । दीधी + शप्+झ। दीधी +0+ अत् अ । दीध्य्+अते । दीध्यते । यहां 'दीधीङ् दीप्तिदेवनयो:' (अदा०अ०) धातु से लट् प्रत्यय और तिप्तस्झि० ' (३/४/७४) से 'ल' के स्थान में 'झ' आदेश, 'कर्तरि शप्' (३ । १ । ६८) से शप् विकरण प्रत्यय और 'अदिप्रभृतिभ्यः शप: ' (२।४/७२ ) से शप् का लुक् होता है। 'दीधीङ्' धातु की इस सूत्र से अभ्यस्त संज्ञा होने से 'अदभ्यस्तात्' (७ 1१1४ ) से 'झ' के झकार को अत् आदेश होता है और 'अभ्यस्तानामादि:' ( ६ |१ |१८६ ) आद्युदात्त स्वर होता है - दीध्य॑ते॒ । ऐसे ही 'वेवीङ्' धातु से - वेव्य॑ते॒ । (३) दीध्यत् । दीधीङ्+लट् । दीधी+शतृ । दीधी+शप्+अत् । दीधी +0+ अत् । दीध्य्+अत् । दीध्यत् । यहां 'दीधीङ्' धातु से 'लट्' प्रत्यय 'लट: शतृशानचावप्रथमासमानाधिकरणें’ (३/२/१२४) से लट् के स्थान में शतृ आदेश, पूर्ववत् शप् विकरण प्रत्यय और उसका लुक् होता है। दीधीङ् धातु की अभ्यस्त संज्ञा होने से 'नाभ्यस्ताच्छतुः' (७ 1१1७८) से 'शतृ' प्रत्यय को नुम् आगम नहीं होता है। अभ्यासस्य दीर्घत्वम् (७) तुजादीनां दीर्घो ऽभ्यासस्य । ७ । प०वि०-तुजादीनाम् ६।३ दीर्घः १ । १ अभ्यासस्य ६ ।१ । स०- तुज आदिर्येषां ते तुजादय:, तेषाम् - तुजादीनाम् (बहुव्रीहि: ) । अन्वयः - तुजादीनामभ्यासस्य दीर्घः । अर्थः-तुजादीनाम्= तुजप्रकाराणां धातूनामभ्यासस्य दीर्घो भवति ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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