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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(अनाव:) नौ शब्द से भिन्न (यत:) यत्-प्रत्ययान्त (द्वयच:) दो अचोंवाले शब्द को (आदिः, उदात्त:) आधुदात्त होता है।
उदा०-चेयम् । चुनने योग्य । जेयम् । जीतने योग्य । कण्ठ्य म् । कण्ठ में होनेवाला। ओष्ठ्यम् । ओष्ठों में होनेवाला।
सिद्धि-(१) चेयम् । चि+यत् । चे+य। चेय+सु। चेयम्।
यहां चिञ् चयने (स्वा० उ०) धातु से 'अचो यत्' (३।१।९७) से यत्' प्रत्यय है। सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३१८४) से इगन्त अंग 'चि' को गुण होता है। इस सूत्र से यत्-प्रत्ययान्त, दो अचोंवाला 'चेयम्' शब्द आधुदात्त होता है। 'तित् स्वरितम् (६।१।१७९) से स्वरित प्राप्त था। ऐसे ही- जि जये' (भ्वा० प०) धातु से-जेयम् ।
(२) कण्ठ्यम् । कण्ठ+यत् । कण्ठ्+य। कण्ठ्य+सु । कण्ठ्यम् ।
यहां कण्ठ' शब्द से 'शरीरावयवाद् यत्' (४।३।५५) से यत्' प्रत्यय है। स्वर-कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-'ओष्ठ' शब्द से-ओष्ठ्यम्।
'नौः' शब्द का प्रतिषेध इसलिये किया है कि यहां आधुदात्त न हो-नाव्यम् । यहां तित् स्वरितम्' (६।१।१७९) से स्वरित स्वर होता है। आधुदात्त:
(५७) ईडवन्दवृशंसदुहां ण्यतः ।२११॥ प०वि०-ईड-वन्द-वृ-शंस-दृहाम् ६।३ ण्यत: ६।१।
स०-ईडश्च वन्दश्च वृश्च शंसश्च दुह् च ते-ईड०दुहः, तेषाम्ईड०दुहाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-उदात्त:, आदिरिति चानुवर्तते। अन्वय:-ण्यताम् ईडवन्दवृशंसदुहामादिरुदात्त:।
अर्थ:-ण्यत्-प्रत्ययान्तानाम् ईडवन्दवृशंसदुहां धातूनामादिरुदात्तो भवति।
उदा०-(ईड:) ईड्यम् । (वन्द:) वन्दयम् । (वृ:) वार्यम् । (शंस:) शंस्य॑म् (दुह:) दोया धेनुः।
आर्यभाषा: अर्थ- (ण्यत:) ण्यत्-प्रत्ययान्त (ईडन्दुहाम्) ईड्, वन्द, वृ, शंस, दुह् धातुओं को (आदि:. उदात्त:) आधुदात्त होता है।