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________________ २०२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(पथिन्) पन्थाः, पन्थानौ, पन्थानः। (मथिन्) मन्थाः, मन्थानौ, मन्थानः। आर्यभाषा: अर्थ-(पथिमथो:) पथिन्, मथिन् शब्दों को (सर्वनामस्थाने) सर्वनामस्थान-संज्ञक प्रत्यय परे होने पर (आदिः, उदात्त:) आधुदात्त होता है। उदा०-(पथिन्) पन्थाः । एक मार्ग । पन्थानौ । दो मार्ग। पन्थानः । सब मार्ग। (मथिन्) मन्थाः । एक रई। मन्थानौ । दो रइयां। मन्थानः । सब रइयां (दूध बिलोने का उपकरण)। सिद्धि-(१) पन्थाः । पथिन्+सु। पथि आ+स्। पथ् अ। आ+स्। पन्ध् । आ+स् । पन्थ् अ आ+स् । पन्थास् । पन्थाः । यहां पथिन्' शब्द से सर्वनामस्थान-संज्ञक 'सु' प्रत्यय है। इस सूत्र में से 'पथिन्' शब्द को आधुदात्त होता है। 'पथिमथ्यभुक्षामात्' (७।१।८५) से पथिन्' के नकार को आकार आदेश, इतोऽत् सर्वनामस्थाने' (७।११८६) से 'पथिन्' के इकार को अकार आदेश और 'थो न्थः' (७/१८७) से थकार के स्थान में 'न्थ' आदेश होता है। ऐसे ही पन्थानौ, पन्थानः। (२) मन्थाः। मिथिन्' शब्द से पूर्ववत् । ऐसे ही-मन्थानौ, मन्थानः । यहां पत्लु गतौ' (भ्वा० प०) धातु से 'पंतस्थ च' (उणा० ४।१२) से 'इनि' प्रत्यय करने पर 'पथिन्' शब्द सिद्ध होता है। मन्थ विलोडने' (भ्वा० पा०) धातु से 'मन्थ:' (उणा० ४।११) से इनि प्रत्यय करने पर 'मथिन्' शब्द सिद्ध होता है। ये दोनों शब्द प्रत्यय-स्वर से अन्तोदात्त हैं। इस सूत्र से सर्वनामस्थान-संज्ञक प्रत्यय परे होने पर आधुदात्त स्वर विधान किया गया है। सुडनपुंसकस्य' (१।१।४२) से सु, औ, जस्, अम्, औट् इन पांच प्रत्ययों की सर्वनामस्थान संज्ञा है। युगपदाधन्तोदात्तः (४३) अन्तश्च तवै युगपत्।१६७ । प०वि०-अन्त: ११ च अव्ययपदम्, तवै ६।१ (लुप्तषष्ठीनिर्देश:) युगपत् अव्ययपदम्। अनु०-उदात्त:, आदिरिति चानुवर्तते । अन्वय:-तवै आदिश्चान्तश्च युगपद् उदात्त: । अर्थ:-तवै-प्रत्ययान्तस्य शब्दस्यादिश्चान्तश्च युगपद् उदात्तो भवति । उदा०-कर्तवै, हवै। प्रत्ययाधुदात्तस्वरापवाद: ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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