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षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः
१६६. (२) स्तीर्यते। यहां 'स्तृञ् आच्छादने (क्रया उ०) धातु से लट् प्रत्यय और पूर्ववत् यक् विकरण-प्रत्यय है। ऋत इद् धातोः' (७।१।१००) से इत्त्व और इसे हलि च' (८।२।७७) से दीर्घ होता है। स्वर-कार्य पूर्ववत् है।
(३) लूयते'। यहां विकल्प पक्ष में तास्यनुदात्तेन्डिन्ददुपदेशात्०' (६।१।१८०) से ल-सार्वधातुक त' प्रत्यय अनुदात्त होता है। यक्' विकरण-प्रत्यय 'आधुदात्तश्च' (३।१।३) से उदात्त है। अत. उदात्तादनुदात्तस्य स्वरितः' (८।४।६५) से अनुदात्त को स्वरित आदेश होता है।
(४) स्तीर्यते। 'स्तृञ् आच्छादने (क्रया उ०) धातु से विकल्प पक्ष में पूर्ववत्। आधुदात्तादि-विकल्पः
___ (३६) थलि च सेटीडन्तो वा ।१६३ ।
प०वि०-थलि ७१ च अव्ययपदम्, सेटि ७१ इट् ११ अन्त: ११ वा अव्ययपदम्।
स०-इटा सह वर्तते इति सेट, तस्मिन्-सेटि (बहुव्रीहिः) । अनु०-उदात्तः, आदि:, अन्यतरस्याम् इति चानुवर्तते। अन्वय:-सेटि थलि इड् च उदात्त:, अन्तो वाऽऽदिरन्यतरस्याम् ।
अर्थ:-सेटि थलि च इडुदात्तो भवति, विकल्पेन चादिरुदात्तो भवति । पक्षे च 'लिति' इति प्रत्ययात् पूर्वमुदात्तं भवति।
उदा०- (इट्-उदात्त:) लुलविथ । (अन्तोदात्त:) लुलविथ । (आधुदात्त:) लुलविथ । (प्रत्ययात् पूर्वमुदात्तम्) लुलविथ । एवं पर्यायण चत्वार उदात्ता भवन्ति।
आर्यभाषा अर्थ- (सेटि) इट्-सहित वाले (थलि) थलन्त पद में (च) भी (इट) इट (उदात्त:) उदात्त होता है और (वा) अथवा (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है और (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (आदिः, उदात्त:) आधुदात्त होता है और पक्ष में लिति (६।१।१८७) से प्रत्यय से पूर्ववर्ती अच् (उदात्त:) उदात्त होता है। इस प्रकार पर्याय से चार उदात्त होते हैं।
उदा०-(इट्-उदात्त) लुलविथ'। (अन्तोदात्त) लुलविथ । (आधुदात्त) लुलेविथ । (प्रत्यय से पूर्व उदात्त) लुलविथ । तूने काटा।
सिद्धि-लुलविथे। लू+लिट् । लू+सिप् । लू+थल् । लू-लू+इट्+थ। लू-लो+इ+थ। लुलविथ।