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षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०-अभ्र आँ अप: (ऋ० ५।४।८।१)। गभीर आँ उमपुत्रे जिघांसत: (ऋ० ८।६७।११)।
सिद्धि-(१) आँ अप: । यहां छन्दविषय में 'आङ्' शब्द को इस सूत्र से अनुनासिक आदेश होता है और वह प्रकृतिभाव से रहता है अर्थात् 'अक: सवर्णे दीर्घः' (६।१।९८). से प्राप्त दीर्घरूप (आ) एकादेश नहीं होता है।
(२) आँ उग्रपुत्रे। यहां छन्दविषय में 'आङ्' शब्द को इस सूत्र से अनुनासिक आदेश होता है और वह प्रकृतिभाव से रहता है अर्थात् 'आद्गुणः' (६।१।८५) से प्राप्त गुणरूप (ओ) एकादेश नहीं होता है। प्रकृतिभावः
(५५) इकोऽसवणे शाकल्यस्य ह्रस्वश्च ।१२६ ।
प०वि०-इक: १।३ (६ ॥१) असवर्णे ७१ शाकल्यस्य ६१ ह्रस्व: ११ च अव्ययपदम्।
स०-न सवर्ण:-असवर्णः, तस्मिन्-असवर्णे (नञ्तत्पुरुषः)। अनु०-संहितायाम्, प्रकृत्या, अचि इति चानुवर्तते।
अन्वयः-संहितायाम् असवर्णेऽचि इक: प्रकृत्या शाकल्यस्य, इकश्च ह्रस्व:।
अर्थ:-संहितायां विषयेऽसवर्णेऽचि परत इक: प्रकृत्या भवन्ति, शाकल्यस्याचार्यस्य मतेन, इकश्च ह्रस्वो भवति।
उदा०-दधि अत्र, दध्यत्र । मधु अत्र, मध्वत्र । कुमारि अत्र, कुमार्यत्र, किशोरि अत्र, किशोर्यत्र।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (असवर्णे) असवर्ण (अचि) अच्-वर्ण परे होने पर (इक:) इक्-वर्ण (प्रकृत्या) प्रकृतिभाव से रहते हैं (शाकल्यस्य) शाकल्य आचार्य के मत में (च) और उस (इक:) इक् के स्थान में (ह्रस्व:) ह्रस्व आदेश होता है।
उदा०-दधि अत्र (शाकल्य) दध्यत्र । (पाणिनि) दही यहां है। मधु अत्र (शाकल्य) मध्वत्र । (पाणिनि) मधु यहां है। कुमारी अत्र (शाकल्य) कुमार्यत्र। (पाणिनि) कुमारी यहां है। किशोरि अत्र (शाकल्य) किशोर्यत्र । (पाणिनि) किशोरी यहां है।
सिद्धि-(१) दधि अत्र। दधि+अत्र । दधि अत्र।
यहां दधि' शब्द का इक्-वर्ण (इ) असवर्ण अच्-वर्ण (अ) परे होने पर इस सूत्र से शाकल्य आचार्य के मत में प्रकृतिभाव से रहता है और उसे पर्जन्यवत् ह्रस्व होता है। ऐसे ही-कुमारि अत्र । किशोरि अत्र ।