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________________ १३२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम् (२) दध्यत्र । दधि + अत्र । दध्यत्र । यहां 'दधि' शब्द के इक्-वर्ण (इ) को असवर्ण अच्-वर्ण (अ) परे होने पर इस सूत्र से पाणिनिमुनि के मत में 'इको यणचि' (६ | १/७५) से यण् (य्) आदेश होता है। ऐसे ही - कुमार्यत्र, किशोर्यत्र । मधु अत्र, मध्वत्र को भी ऐसे ही समझें । प्रकृतिभावः (५६) ऋत्यकः । १२७ । प०वि० - ऋति ७ । १ अक: १।३ (६ । १) । अनु० - संहितायाम्, प्रकृत्या, शाकल्यस्य ह्रस्वः, च इति चानुवर्तते । अन्वयः - संहितायाम् ऋति अकः प्रकृत्या, शाकल्यस्य, ह्रस्वश्च । अर्थ:-संहितायां विषये ऋकारे परतोऽकः प्रकृत्या भवन्ति, शाकल्यस्याचार्यस्य मतेन, अकश्च ह्रस्वो भवति । 1 उदा०-खट्व ऋश्य:, खट्वर्श्यः । माल ऋश्य:, मालर्थ: । होतृ ऋश्य:, होतॄश्यः । आर्यभाषाः अर्थ - ( संहितायाम् ) सन्धि- विषय में (ऋति) ऋ वर्ण परे होने पर (अक:) अक्-वर्ण (प्रकृत्या) प्रकृतिभाव से रहते हैं (शाकल्यस्य) शाकल्य आचार्य के मत में (च) और उस (अक:) अक्-वर्ण के स्थान में ( ह्रस्व:) ह्रस्व आदेश होता है। उदा०-खट्व ऋश्य: (शा० ) खट्वर्श्य: (पा० ) । माल ऋश्य: ( शा० ) मालर्थ: ( पा० ) । होतृ ऋश्य: ( शा० ) होतृश्य: ( पा० ) । ऋश्य: = सफेद पैरोंवाला बारहसिंघा । सिद्धि - (१) खट्व ऋश्य: । खट्वा + ऋश्यः । खट्व ऋश्यः । यहां 'खट्वा' शब्द का अक्-वर्ण (आ) ऋ-वर्ण परे होने पर इस सूत्र से शाकल्य आचार्य के मत में प्रकृतिभाव से रहता है और उसे ह्रस्व आदेश (अ) होता है। ऐसे ही -‍ - माला + ऋश्य: = माल ऋश्य: । होतृ+ऋश्य: होतृ ऋश्यः । (२) खट्वर्श्य: । खट्वा + ऋश्यः । खट्व् अर् - श्यः । खट्वर्श्यः । यहां खट्वा शब्द के आ-वर्ण से उत्तर ऋ वर्ण परे होने पर पाणिनि मुनि के मत में 'आद्गुण:' ( ६ 1१1८५ ) से पूर्व पर के स्थान में गुणरूप ( अ ) एकादेश होता है और उसे 'उरण् रपरः ' (१1१1५०) से रपरत्व (अर् ) होता है। ऐसे माला+ऋश्य: = मालर्श्यः । (३) होतृश्य: । यहां पाणिनि मुनि के मत में 'अकः सवर्णे दीर्घः' (६ । १।९८) से पूर्व-पर के स्थान में दीर्घरूप (ॠ) एकादेश होता है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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