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________________ षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः १२७ १२७ प्रकृतिभाव-विकल्प: (५०) सर्वत्र विभाषा गोः।१२१। प०वि०-सर्वत्र अव्ययपदम्, विभाषा १।१ गो: ६।१। अनु०-संहितायाम्, एङ:, अति, प्रकृत्या इति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां सर्वत्र गोरेङ् अति विभाषा प्रकृत्या। अर्थ:-संहितायां सर्वत्र छन्दसि भाषायां च गोरेङ् अति परतो विकल्पेन प्रकृत्या भवति। उदा०-(छन्दसि) अपशवो वा अन्ये गो अश्वेभ्यः पशव: गो अश्वान् (तै०सं० ५।२।९।४) (भाषायाम्) गोऽग्रम्, गो अग्रम् । ___आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (सर्वत्र) छन्द और लोकभाषा में (गो:) गो शब्द का (एङ्) एड्-वर्ण (अति) अ-वर्ण परे होने पर (विभाषा) विकल्प से (प्रकृत्या) प्रकृतिभाव से रहता है। उदा०-(छन्द) अपशवो वा अन्ये गो अश्वेभ्यः पशव: गो अश्वान् (तै०सं० ५।२।९।४)। (भाषा) गोऽग्रम्, गो अग्रम् । गौ का अगला भाग (मुख)। सिद्धि-(१) गो अश्वान् । यहां छन्दविषय में गो' शब्द का एड् वर्ण (ए) अश्व' शब्द के अ-वर्ण के परे होने पर इस सूत्र से प्रकृतिभाव से रहता है। अर्थात् 'एड: पदान्तादति (६।१।१०६) से प्राप्त पूर्वरूप एकादेश नहीं होता है। ऐसे ही-गो अश्वान् । (२) गोऽग्रम् । यहां लोकभाषा विषय में गो' शब्द का एड् वर्ण (ओ) अश्व शब्द के अ-वर्ण के परे होने पर इस सूत्र से विकल्प से प्रकृतिभाव से रहता है। अत: विकल्प पक्ष में 'एङ: पदान्तादति' (६।१।१०६) से पूर्वरूप एकादेश (ओ) होता है। (३) गो अग्रम् । यहां 'गो' शब्द को एङ् वर्ण (ओ) 'अग्रे' शब्द के अ-वर्ण परे होने पर लोकभाषा में प्रकृतिभाव से रहता है। 'एड: पदान्तादति' (६।१ ।१०६) से प्राप्त पूर्वरूप एकादेश नहीं होता है। अवङ्-आदेश: (५१) अवङ् स्फोटायनस्य।१२२। प०वि०-अवङ् ११ स्फोटायनस्य ६।१ । अनु०-संहितायाम्, एङ:, अचि, गोरिति चानुवर्तते। 'अति' इति च निवृत्तम्।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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