SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय और (यजुषि) यजुर्वेद विषय में जो (एङ्) एड् वर्ण है वह (अनुदात्ते) अनुदात्त (कु-धपरे) कवर्गपरक और धकारपरक (अति) अ-वर्ण परे होने पर (प्रकृत्या) प्रकृतिभाव से रहता है। उदा०-कवर्गपरक अकार-अयं नो अग्नि: (यजु० ५ ॥३७) । धकारपरक अकारअयं सो अध्वरः। सिद्धि-(१) नो अग्निः। यहां नो' शब्द का एङ्-वर्ण (ओ) 'अग्नि' शब्द के अनुदात्त एवं कवर्गपरक अ-वर्ण परे होने पर याजुष विषय में इस सूत्र से प्रकृतिभाव से रहता है अर्थात् 'एङ: पदान्तादति (६।१।१०८) से प्राप्त पूर्वरूप एकादेश नहीं होता है। 'अग्नि' शब्द अनुदात्तादि है। (२) सो अध्वरः । यहां 'सो' शब्द का एङ् वर्ण (ओ) 'अध्वर' शब्द के अनुदात्त एवं धकारपरक अ-वर्ण परे होने पर इस सूत्र से प्रकृतिभाव से रहता है अर्थात् पूर्ववत् प्राप्त पूर्वरूप एकादेश नहीं होता है। 'अध्वर' शब्द अनुदात्तादि है। प्रकृतिभावः (४६) अवपथासि च।१२०। प०वि०-अवपथासि ७१ च अव्ययपदम् । अनु०-संहितायाम्, एङ:, अति, प्रकृत्या, यजुषि, अनुदात्ते इति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां यजुषि एङ् अनुदात्तेऽवपथासि चाति प्रकृत्या। अर्थ:-संहितायां यजुषि च विषये य एङ्-वर्ण: सोऽनुदात्तेऽवपथासि चाति परत: प्रकृत्या भवति । उदा०-त्री रुद्रेभ्यो अवपथा: (का०सं० ३०।६।३२) । आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय और (यजुषि) यजुर्वेद विषय में (एड्) एड्-वर्ण (अनुदात्ते) अनुदात्त (अवपथासि) 'अवपथा:' शब्द विषयक (अति) अ-वर्ण परे होने पर (च) भी (प्रकृत्या) प्रकृतिभाव से रहता है। उदा०-त्री रुद्रेभ्यो अवपथा: (का०सं० ३०।६।३२)। सिद्धि-रुद्रेभ्यो अवपथाः। यहां रुद्रेभ्यो' शब्द का एङ्-वर्ण (ओ) अवपथासि शब्द विषयक अनुदात्त अ-वर्ण परे होने पर इस सूत्र से प्रकृतिभाव से रहता है अर्थात् 'एङ: पदान्तादति (६।१।१०८) से प्राप्त पूर्वरूप एकादेश नहीं होता है। 'अवपथा:' यहां डुवप बीजसन्ताने छेदने च' (भ्वा०३०) धातु से लङ् प्रत्यय और उसके स्थान में 'थास्’ आदेश है और तिङ्ङतिङः' (८1१।२८) से अनुदात्त होता है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy