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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-वृक्षौ । प्लक्षौ । खट्वे । कुण्डे।
आर्यभाषा: अर्थ- (संहितायाम्) सन्धि-विषय में (आत्) अ-वर्ण से उत्तर (इचि) इच् वर्ण परे होने पर (पूर्वपरयोः) पूर्व-पर के स्थान में (पूर्वसवर्ण:) पूर्वसवर्ण (दीर्घ:) दीर्घ रूप (एक:) एकादेश (न) नहीं होता है।
उदा०-वृक्षौ। दो वृक्ष/को। प्लक्षौ। दो प्लक्ष/को (पलखण)। खट्वे । दो खाट/को। कुण्डे । दो कुण्ड/को।
सिद्धि-(१) वृक्षौ । वृक्ष+औ। वृक्षौ।
यहां वृक्ष शब्द के अ-वर्ण से उत्तर इच् (औ) परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में इस सूत्र से पूर्वसवर्ण दीर्घ एकादेश नहीं होता है। प्रथमयो: पूर्वसवर्ण:' (६।१।९९) से पूर्वसवर्ण दीर्घ एकादेश प्राप्त था, इस सूत्र से उसका प्रतिषेध किया गया है। अत: यहां वृद्धिरेचि' (६।१।८६) से वृद्धिरूप एकादेश होता है। ऐसे ही वृक्ष शब्द से औट (द्वितीया-द्विवचन) प्रत्यय करने पर-वृक्षौ। ऐसे ही प्लक्ष शब्द से-प्लक्षौ।
(२) खट्वे । खट्वा+औ। खट्वा+शी। खट्वा+ई। खट्वे ।
यहां खट्वा शब्द के अ-वर्ण (आ) से उत्तर इच् (औ) परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में इस सूत्र से पूर्वसवर्ण दीर्घ एकादेश का प्रतिषेध होकर 'औङ: शी' (७।१।१८) से 'औ' के स्थान में 'शी' आदेश होता है। पश्चात् 'आद् गुणः' (६।१।८५) से गुणरूप एकादेश होता है। ऐसे ही 'खट्वा' शब्द से औट् (द्वितीया-द्विवचन) प्रत्यय करने पर-खट्वे।
(३) कुण्डे । कुण्ड+औ। कुण्ड+शी। कुण्ड+ई। कुण्डे ।
यहां कुण्ड शब्द के अ-वर्ण से उत्तर एच् (औ) परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में इस सूत्र से पूर्वसवर्ण दीर्घ एकादेश का प्रतिषेध होकर नपुंसकाच्च' (७।१।१९) से औ' के स्थान में 'शी' आदेश होता है। पश्चात् ‘आद् गुणः' (६।११८५) से गुणरूप एकादेश होता है। ऐसे ही कुण्ड शब्द से औट् (द्वितीया-द्विवचन) प्रत्यय करने पर-कुण्डे । पूर्वसवर्णदीर्घ-प्रतिषेधः
(३३) दीर्घाज्जसि च ।१०४। प०वि०-दीर्घात् ५ ।१ जसि ७।१ च अव्ययपदम् ।
अनु०-संहितायाम्, एक:, पूर्वपरयोः, दीर्घ:, पूर्वसवर्णः, न, इचि इति चानुवर्तते।
अन्वय:-संहितायां दीर्घाद् इचि जसि च पूर्वपरयो: पूर्वसवर्णो दीर्घो न।