SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्टाध्यायस्य प्रथमः पादः ११३ अर्थ:-संहितायां विषये दीर्घवर्णाद् इचि जसि च प्रत्यये परत: पूर्वपरयो: स्थाने पूर्वसवर्णदीर्घ एकादेशो न भवति।। उदा०-कुमार्यो, कुमार्यः । ब्रह्मबन्ध्वौ, ब्रह्मबन्ध्वः । आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (दीर्घात्) दीर्घ वर्ण से उत्तर (इचि) इच् वर्ण और (जसि) जस् प्रत्यय परे होने पर (पूर्वपरयो:) पूर्व-पर के स्थान में (पूर्वसवर्ण:) पूर्वसवर्ण (दीर्घः) दीर्घ (एक:) एकादेश (न) नहीं होता है। उदा०-कुमार्यो । दो कुमारियों ने/को। कुमार्य: । सब कुमार्यों ने/को। ब्रह्मबन्ध्वौ । दो पतित ब्राह्मणियों ने/को। ब्रह्मबन्ध्वः । सब पतित ब्राह्मणियों ने/को। सिद्धि-(१) कुमार्यो । कुमारी+औ। कुमार्य+औ। कुमार्यो। यहां कुमारी शब्द के दीर्घ वर्ण (ई) से उत्तर इच् (औ) परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में इस सूत्र से पूर्वसवर्ण दीर्घ नहीं होता है, अत: 'इको यणचिं' (६ /१ १७५) से यण आदेश होता है। ऐसे ही कुमारी शब्द से औट (द्वितीया-द्विवचन) प्रत्यय करने पर-कुमार्यो। (२) कुमार्यः । कुमारी+जस् । कुमारी+अस् । कुमार्य+अस्। कुमार्यः । यहां कुमारी शब्द के दीर्घ वर्ण (ई) से उत्तर जस् प्रत्यय परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में इस सूत्र से पूर्वसवर्ण दीर्घ नहीं होता है, अत: पूर्ववत् यण आदेश होता है। ऐसे ही ब्रह्मबन्धू' शब्द से-ब्रह्मबन्ध्वौ, ब्रह्मबन्ध्वः । पूर्वसवर्णदीर्घ-विकल्प: (३४) वा छन्दसि।१०५। प०वि०-वा अव्ययपदम्, छन्दसि ७।१। अनु०-संहितायाम्, एकः, पूर्वपरयोः, दीर्घ:, पूर्वसवर्णः, न, इचि, दीर्घात्, जसि इति चानुवर्तते। ___ अन्वयः-संहितायां छन्दसि दीर्घाद् इचि जसि च पूर्वपरयो: पूर्वसवर्णो वा दी? एको न। __ अर्थ:-संहितायां छन्दसि च विषये दीर्घ-वर्णाद् इचि जसि च प्रत्यये परत: पूर्वपरयो: स्थाने विकल्पेन पूर्वसवर्णदीर्घ एकादेशो न भवति । उदा०-मारुतीश्चतस्रः (का०सं० ११ ।१०)। मारुत्यश्चतस्रः । पिण्डी:, पिण्ड्यः । वाराही, वाराह्यौ। उपानही (मै०सं० ४।४।६)। उपनद्यौ (लौ०गृ० ३१७)।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy