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________________ १०६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम अन्वय:-संहितायाम् अपदान्ताद् अतो गुणे पूर्वपरयो: पररूपमेक: । अर्थ:-संहितायां विषयेऽपदान्ताद् अकाराद् गुणे परत: पूर्वपरयो: स्थाने पररूपमेकादेशो भवति। उदा०-ते पचन्ति । ते यजन्ति । अहं पचे। अहं यजे। आर्यभाषा8 अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (अपदान्तात्) अपदान्त (अत:) अकार से उत्तर (गुणे) गुण अ, ए, ओ वर्ण परे होने पर (पूर्वपरयो:) पूर्व-पर के स्थान में (पररूपम्) पररूप (एक:) एकादेश होता है। उदा०-ते पचन्ति। वे सब पकाते हैं। ते यजन्ति। वे सब यज्ञ करते हैं। अहं पचे। मैं पकाता हूं। अहं यजे। मैं यज्ञ करता हूं। सिद्धि-(१) पचन्ति । पच्+लट् । पच्+झि। पच्+शप्+अन्ति। पच्+अ+अन्ति। पच्+अन्ति। पचन्ति। यहां डुपचष् पाके' (भ्वा० उ०) धातु से लट् प्रत्यय है। उसके लकार के स्थान में तिपतस्झि०' (३।४।७८) से 'झि' आदेश और कर्तरि शप्' (३१६८) से शप' विकरण प्रत्यय होता है। झोऽन्तः' (७।१।३) से झ्' के स्थान में 'अन्त' आदेश होता है। ‘पच्+अ+अन्ति' इस स्थिति में अकार से उत्तर गुण (अ) परे होने पर इस सूत्र से पूर्व-पर के स्थान में पररूप (अ) एकादेश होता है। ऐसे ही यज देवपूजासङ्गतिकरणदानेषु' (भ्वा०३०) धातु से-यजन्ति। (२) पचे। पच्+लट् । पच्+इट् । पच्+शप्+इ। पच्+अ+ए। पच्+ए। पचे। यहां पूर्वोक्त पच्' धातु से लट्' प्रत्यय और उसके स्थान में आत्मनेपद 'इट' आदेश है। उसे 'टित आत्मनेपदानां टेरे' (३।४।७९) से एत्व होता है। 'पच्+अ+ए' इस स्थिति में अकार से उत्तर गुण (ए) परे होने पर इस सूत्र से पूर्व-पर के स्थान में पररूप (ए) एकादेश होता है। ऐसे ही यज्' धातु से-यजे। पररूप-एकादेशः (२७) अव्यक्तानुकरणस्यात इतौ।६८। प०वि०-अव्यक्तानुकस्य ६।१ अत: ५।१ इतौ ७ १ । स०-अपरिस्फुटवर्णम् अव्यक्तम् । अव्यक्तस्यानुकरणम्-अव्यक्तानुकरणम्, तस्य-अव्यक्तानुकरणस्य (षष्ठीतत्पुरुषः) । अनु०-संहितायाम्, एकः, पूर्वपरयोः, पररूपम् इति चानुवर्तते।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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