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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
अन्वयः -तेन, तम् कालात् समाया निर्वृत्तम्, अधीष्टो भृतो भूतो
भावी खः ।
अर्थ:-तेन इति तृतीयासमर्थात्, तम् इति च द्वितीयासमर्थात् कालविशेषवाचिनः समा-शब्दात् प्रातिपदिकाद् निर्वृत्तम्, अधीष्टो भृतो भूतो भावी इत्येतेषु पञ्चस्वर्थेषु खः प्रत्ययो भवति ।
उदा०-(निर्वृत्तम्) समया निर्वृत्तम् - समीनं भवनम् । (अधीष्टः ) समामधीष्ट:-समीनोऽध्यापकः । (भृतः ) समां भृतः - समीनः कर्मकरः । (भूत) समां भूतः - समीनो व्याधिः । ( भावी) समां भावी - समीनो यज्ञः ।
आर्यभाषाः अर्थ- (तन) तृतीया-समर्थ तथा (तम्) द्वितीया-समर्थ (कालात्) कालविशेषवाची (समायाः) समा प्रातिपदिक से (निर्वृत्तम्, अधीष्टो भृतो भूतो भावी) निर्वृत्त, अधीष्ट, भृत, भूत, भावी इन पांच अर्थों में (ख) ख प्रत्यय होता है।
उदा०- - (निर्वृत्त) समा= एक वर्ष में बनाया गया-समीन भवन। (अधीष्ट) समा= एक वर्ष तक सत्कार पूर्वक अध्यापन कार्य में लगाया गया-समीन अध्यापक । (भृत) समा=एक वर्ष तक वेतन से खरीदा गया - समीन कर्मकर । (भूत) समा= एक वर्ष तक व्याप्त रही- समीन व्याधि । ( भावी) समा= एक वर्ष तक व्याप्त रहनेवाला- समीन यज्ञ ।
सिद्धि-समीनः। समा+टा/अम्+ख। सम्+ईन। समीन+सु। समीनम्।
यहां तृतीया-समर्थ/द्वितीया-समर्थ कालविशेषवाची 'समा' शब्द से निर्वृत्त आदि पांच अर्थों में इस सूत्र से 'ख' प्रत्यय है। 'आयनेय०' (७।१।२) से 'ख्' के स्थान में 'ईन्' आदेश होता है। 'यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के आकार का लोप होता है। विशेषः यहां निर्वृत्त-अर्थ में तृतीया - समर्थ विभक्ति और अधीष्ट, भृत, भूत, भावी इन चार अर्थों में द्वितीया-समर्थ विभक्ति होती है। शेष प्रकरण में भी ऐसा ही समझें ।
ख- विकल्प:
(२) द्विगोर्वा । ८५ ।
प०वि० - द्विगो: ५ ।१ वा अव्ययपदम् ।
अनु० - कालात् तेन निर्वृत्तम्, तम्, अधीष्टः, भृतः, भावी, समायाः,
1
ख इति चानुवर्तते ।
अन्वयः-तेन, तम् कालाद् द्विगो: समाया निर्वृत्तम् अधीष्टो भृतो
भूतो भावी वा ख: ।
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