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पञ्चमाध्यायस्य प्रथमः पादः
अर्थ:-तेन इति तृतीयासमर्थात् तम् इति च द्वितीयासमर्थात् कालविशेषवाचिनो द्विगुसंज्ञकात् समा-शब्दान्तात् प्रातिपदिकाद् निर्वृत्तम् अधीष्टो भृतो भूतो भावी इत्येतेषु पञ्चस्वर्थेषु विकल्पेन खः प्रत्ययो भवति, पक्षे च यथाविहितं ठञ प्रत्ययो भवति ।
उदा०-(निर्वृत्तम्) द्वाभ्यां समाभ्यां निर्वृत्तम्- द्विसमीनं भवनम् (ख: ) । द्वैसमिकम् (ठञ्)। (अधीष्टः ) द्वे समे अधीष्ट:- द्विसमीनोऽध्यापकः (ख ) । द्वैसमिकोऽध्यापकः (ठञ्) । (भृतः ) द्वे समे भृतः - द्विसमीनः कर्मकरः (ख: ) । द्वैसमिकः कर्मकर: (ठञ्) । (भूतः ) द्वे समे भूतः - द्विसमीनो व्याधिः (खः) । द्वैसमिको व्याधिः ( ठञ् ) | ( भावी) द्वे समे भावीद्विसमीनो यज्ञः (ख: ) । द्वैसामिको यज्ञ : ( ठञ् ) । इत्थम् - त्रिसमीनम् ।
त्रैसमिकम् ।
आर्यभाषाः अर्थ- (तेन) तृतीया - समर्थ (तम्) द्वितीया-समर्थ (कालात् ) कालविशेषवाची (द्विगोः) द्विगुसंज्ञक (समायाः ) समान्त प्रातिपदिक से (निर्वृत्तम्, अधीष्टो भृतो भूतो भावी) निर्वृत्त, अधीष्ट, भृत, भूत, भावी इन पांच अर्थों में (वा) विकल्प से (ख:) ख प्रत्यय होता है और पक्ष में यथाविहित ठञ् प्रत्यय होता है।
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उदा०
- (निर्वृत्त) द्विसम= दो वर्ष में बनाया गया- द्विसमीन भवन (ख)। द्वैसमिक भवन (ठञ्) । (अधीष्ट) द्विसम= दो वर्ष तक सत्कार पूर्वक अध्यापन कार्य में लगाया गया-द्विसमीन अध्यापक ( ख ) । द्वैसमिक अध्यापक ( ठञ्) । (भृत) द्विसम-दो वर्ष तक वेतन से खरीदा गया-द्विसमीन कर्मकर ( ख ) । द्वैसमिक कर्मकर (ठञ्) । (भूत) द्विसम= दो वर्ष तक व्याप्त रही- द्विसमीन व्याधि (ख ) । (भावी) द्विसम= दो वर्ष तक होनेवाला - द्विसमीन यज्ञ ( ख ) । समिक |
द्वैसमिक व्याधि ( ठञ् ) । द्वैसमिक यज्ञ ( ठञ् )
।
ऐसे ही - त्रिसमीन,
सिद्धि - (१) द्विसमीनम् । द्विसम+टा / अम्+ख । द्विसम् +ईन । द्विसमीन + सु ।
द्विसमीनम् ।
यहां तृतीया/ द्वितीया-समर्थ, द्विगुसंज्ञक, कालविशेषवाची, समान्त 'द्विसम' शब्द से निर्वृत्त आदि पांच अर्थों में इस सूत्र से 'ख' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है ।
(२) द्वैसमिकम् । यहां पूर्वोक्त 'द्विसम' शब्द से निर्वृत्त आदि पांच अर्थों में विकल्प पक्ष में 'प्राग्वतेष्ठञ्' (५1१1१८) से यथाविहित 'ठञ्' प्रत्यय है । पूर्ववत् 'ठू' के स्थान में 'इकु' आदेश, अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही- त्रिसमीनम्, वैसमिकम् ।
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