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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् है इसका यह-अशीति। (नवति.) नौ दशक परिमाण है इसका यह-नवति । (शतम्) दश दशक परिमाण है इसका यह-शत।
सिद्धि-(१) पङ्क्तिः । पञ्च+जस्+ति। पञ्च्+ति। पक्+ति। पङ्क्ति +सु। पङ्क्तिः ।
यहां प्रथमा-समर्थ, परिमाणवाची 'पञ्चन्' शब्द से षष्ठी-विभक्ति के अर्थ में इस सूत्र से 'ति' प्रत्यय, और 'पञ्चन्' शब्द के टि-भाग (अन्) का लोप निपातित है। 'स्वादिष्वसर्वनामस्थाने (१।४।१७) से 'पञ्चन्' शब्द की पद संज्ञा होती है। चो: कु:' (८।२।३०) से पद के च’ को क्, 'अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः' (८।४।५७) से अनुस्वार को परसवर्ण ‘ङ्' होता है। पङ्क्ति छन्द। यह छन्द पांच चरणों का होता है। इसके एक चरण में ८ अक्षर होते हैं। इसमें कुल ५४८=४० अक्षर होते हैं।
(२) विंशति: । द्विदशत्+जस्+शतिच् । विन्+शति। वि +शति। विंशति+सु। विंशतिः।
__ यहां द्विदशत् (दो दशत्-दहाई के जोड़े) शब्द से इस सूत्र से 'शतिच्’ प्रत्यय और द्विदश के स्थान में विन्-आदेश निपातित होता है। यहां निपातन से स्वादिष्वसर्वनामस्थाने (१।४।१७) से प्राप्त पदसंज्ञा का अभाव होकर 'नश्चापदान्तस्य झलि' (८।३।२४) से न्' को अनुस्वार आदेश होता है।
(३) त्रिंशत् । त्रिदशत्+जस्+शत्। त्रिन्+शत्। त्रि+शत् । त्रिंशत्+सु। त्रिंशत् ।
यहां त्रिदशत् (तीन दशत्-दहाई के जोड़े) शब्द से इस सूत्र से शत् प्रत्यय निपातित है।
(४) चत्वारिंशत् । चतुर्दशत्+जस्+शत्। चत्वारिन्+शत्। चत्वारिंशत्+सु। चत्वारिंशत्।
यहां चतुर्दशत् (चार दशत्-दहाई के जोड़े) शब्द से इस सूत्र से शत् प्रत्यय निपातित है।
(५) पञ्चाशत् । पञ्चदशत्+जस्+शत् । पञ्चा+शत् । पञ्चाशत्+सु। पञ्चाशत् ।
यहां पञ्चदशत्' (पांच दशत्-दहाई के जोड़े) शब्द से इस सूत्र से 'शत्' प्रत्यय और पञ्चन्' के स्थान में पञ्चा' आदेश निपातित है।
(६) षष्टिः । षड्दशत्+जस्+ति । षष्+ति । षष्टि+सु। षष्टिः ।
यहां षड्दशत्' (छ:दशत्-दहाई के जोड़े) शब्द से इस सूत्र से 'शत्' प्रत्यय और 'षड्दशत' के स्थान में षष्' आदेश निपातित है। स्वादिष्वसर्वनामस्थाने (१।४।१७) से प्राप्त पद संज्ञा निपातन से नहीं होती है। पद संज्ञा न होने से झलां जशोऽन्ते (८।२।३९) से प्राप्त षष्' के 'ए' को जश् 'ड्' नहीं होता है। 'ष्टुना ष्टुः' (८।४।४१) टुत्व होता है।
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