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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् प्रातिपदिकान्तस्य' (८।२।७) से पञ्चन्' के नकार का लोप होता है। ऐसे हीसप्तकः।
.. (२) साहस्रः। यहां प्रथमा-समर्थ सहस्र' शब्द से अस्य-अर्थ में तथा अंश-आदि अभिधेय में शतमानविंशतिकसहस्रवसनादण्' (५।१।२७) से यथाविहित अण्' प्रत्यय है। यथाविहितं प्रत्ययः
(२) तदस्य परिमाणम्।५६। प०वि०-तत् १११ अस्य ६।१ परिमाणम् १।१ । अन्वय:-तत् प्रातिपदिकाद् अस्य यथाविहितं प्रत्ययः, परिमाणम् ।
अर्थ:-तद् इति प्रथमासमर्थात् प्रातिपदिकाद् अस्येति षष्ठ्यर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थं परिमाणं चेत् तद् भवति।
उदा०-प्रस्थ: परिमाणमस्य-प्रास्थिको राशि: । खारीक: । शत्यः । शतिक:। साहस्रः। द्रौणिकः। कौडविकः। वर्षशतं परिमाणमस्यवार्षशतिक: । वार्षसहस्रिकः । षष्टिर्जीवितं परिमाणमस्य-षाष्टिकः । साप्ततिक:।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ प्रातिपदिक से (अस्य) षष्ठी-विभक्ति के अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है (परिमाणम्) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह परिमाण हो।
उदा०-प्रस्थ (१० छटांक) परिमाण है इसका यह-प्रास्थिक राशि। खारी (४ मण) परिमाण है इसका यह-खारीक राशि। शत-सौ कार्षापण परिमाण है इसका यह-शत्य अथवा शतिक राशि। सहस्र हजार कार्षापण परिमाण है इसका यह-साहस्र राशि। कुडव (ढाई छटांक) परिमाण है इसका यह-कौडविक। वर्ष शत=(सौ वर्ष) परिमाण है इसका यह वार्षशतिक यज्ञ। वर्ष सहस्र (हजार वर्ष) परिमाण है इसका यह-वार्षसहस्रिक । वंशपरम्परित महायज्ञ । षष्टि (साठ वर्ष) जीवन है इसका यह-षाष्टिक पुरुष। सप्तति (सत्तर वर्ष) जीवन है इसका यह-साप्ततिक पुरुष।
सिद्धि-(१) प्रास्थिकः । प्रस्थ+सु+ठञ् । प्रास्थ्+इक । प्रास्थिक+सु । प्रास्थिकः ।
यहां प्रथमा-समर्थ प्रस्थ' शब्द से अस्य-अर्थ में तथा परिमाण अभिधेय में प्रागवतेष्ठ (५।१।१८) से यथाविहित ठञ्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-द्रौणिकः, कौडविकः, वार्षशतिक: आदि।
(२) खारीक: । यहां खारी' शब्द से 'खार्या ईकन्' (५।१।३३) से यथाविहित 'ईकन्' प्रत्यय है।
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