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पञ्चमाध्यायस्य प्रथमः पादः ख-विकल्प:
(२) आढकाचितपात्रात् खोऽन्यतरस्याम् ।५२।
प०वि०-आढक-आचित-पात्रात् ५।१ ख: १।१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम्।
स०-आढकं च आचितं च पात्रं च एतेषां समाहार: आढकाचितपात्रम्, तस्मात्-आढकाचितपात्रात् (समाहारद्वन्द्वः) ।
अनु०-तत्, सम्भवति, अवहरति, पचति इति चानुवर्तते। अन्वय:-तद् आढकाचितपात्रात् सम्भवति, अवहरति, पचत्यन्यतरस्यां
खः।
अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थेभ्य आढकाचितपात्रेभ्य: प्रातिपदिकेभ्य: सम्भवति, अवहरति, पचति इत्येतेष्वर्थेषु विकल्पेन ख: प्रत्ययो भवति, पक्षे च ठञ् प्रत्ययो भवति।
उदा०-(आढकम्) आढकं सम्भवति, अवहरति, पचति वा-आढकीना स्थाली (ख:)। आढकिकी स्थाली (ठञ्) । (आचितम्) आचितं सम्भवति, अवहरति, पचति वा-आचितीना स्थाली (ख:)। आचितिकी स्थाली (ठञ्) । (पात्रम्) पात्रं सम्भवति, अवहरति, पचति वा-पात्रीणा स्थाली (ख:) । पात्रिकी स्थाली (ठञ्)।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (आढकाचितपात्रात्) आढक, आचित, पात्र प्रातिपदिकों से (सम्भवति) धारण कर सकता है (अवहरति) कम धारण कर सकता है (पचति) पकाता है अर्थों में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (ख:) ख प्रत्यय होता है और पक्ष में औत्सर्गिक ठञ् प्रत्यय होता है।
उदा०-(आढक) आढक ढाई सेर को जो धारण कर सकती है, उससे कम को धारण कर सकती है, उसे पकाती है-वह आढकीना स्थाली (पतीली) (ख)। आढकिकी स्थाली (ठञ्)। (आचित) आचित=२५ मण को जो धारण कर सकती है, उससे कम को धारण कर सकती है वा उसे पकाती है वह-आचितीना स्थाली (ख)। आचितिकी स्थाली (ठञ्) । (पात्र) पात्र ढाई सेर को जो धारण कर सकती है, उससे कम को धारण कर सकती है वा उसे पकाती है वह-पात्रीणा स्थाली (ख)। पात्रिकी स्थाली (ठञ्)।।
सिद्धि-(१) आढकीना। आढक+अम्+ख । आढक्+ईन। आढकीन+टाप् । आढकीना+सु। आढकीना।
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