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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् है। जब वह काशी पहुंचने को होता तब वहां के लोग उसके लिये आवहति-अर्थ में वस्निक' शब्द का प्रयोग करते थे अर्थात् वह बिक्री की रोकड़ ला रहा है" (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० २३३)।
सम्भवति-आद्यर्थप्रत्ययविधिः यथाविहितं प्रत्ययः
(१) सम्भवत्यवहरति पचति।५१। प०वि०-सम्भवति क्रियापदम्, अवहरति क्रियापदम्, पचति क्रियापदम्।
अनु०-तद् इत्यनुवर्तते।
अन्वय:-तत् प्रातिपदिकात् सम्भवति, अवहरति, पचति यथाविहितं प्रत्ययः ।
अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थात् प्रातिपदिकात् सम्भवति, अवहरति, पचति इत्येतेष्वर्थेषु यथाविहितं प्रत्ययो भवति ।
उदा०-प्रस्थं सम्भवति, अवहरति, पचति वा-प्रास्थिक: । कौडविक: । खारीकः।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ प्रातिपदिक से (सम्भवति) धारण कर सकता है (अवहरति) कम धारण करता है (पचति) पकाता है अर्थों में यथाविहित प्रत्यय होता है।
उदा०-प्रस्थ (१० छटांक) को जो धारण कर सकता है, उससे कम को धारण कर सकता है वा पकाता है वह-प्रास्थिक पात्र । कुडव (१६ तोला) को जो धारण कर सकता है, उससे कम को धारण कर सकता है वा उसे पकाता है वह-कौडविक । खारी (४ मण) को धारण कर सकता है, उससे कम को धारण करता है वा पकाता है वह-खारीक, कडाहा आदि।
सिद्धि-(१) प्रास्थिकः । प्रस्थ+अम्+ठञ् । प्रास्थ्+क। प्रास्थिक+सु । प्रास्थिकः ।
यहां द्वितीया-समर्थ प्रस्थ' शब्द से सम्भवति-आदि अर्थों में प्रागवतेष्ठ (५।१।१८) से यथाविहित ठञ्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-कौडविकः ।
(२) खारीकः । यहां द्वितीया-समर्थ 'खारी' शब्द से सम्भवति-आदि अर्थों में खार्या ईकन् (५।१।३३) से 'ईकन्' प्रत्यय है।
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