________________
अनुभूमिका (१९) वर्मती :- (४।३।९०) हो सकता है यह 'बीमरान' का पुराना नाम हो, जहां से कि खरोष्टी लेख प्राप्त हुआ है। अथवा-यह 'बामियां' हो जो कि बाल्हीक (बल्ख) और कपिशा के बीच में बहुत बड़ा केन्द्र था। यहां से आनेवाले घोड़ों को वार्मतय' कहा गया है।
(२०) वार्णव :- (४।२।७७) वर्गु नदी के समीप स्थित नगर की संख्या 'वार्णव' थी। इसकी पहचान आधुनिक 'बन्नू' से की गई है।
(२१) शर्करा :- (४।२।८३) यह सिन्धु नद के किनारे ‘सक्खर' नामक प्रसिद्ध स्थान है।
_ (२२) शलातुर :- (४।३।९४) यह पाणिनिमुनि का जन्मस्थान है जो कि सिन्धु-कुम्भा नदियों के संगम के कोने में ओहिन्द से चार मील पश्चिम में था। यह स्थान इस समय 'लहुर' कहलाता है।
(२३) शिखावल :- (४।२।८९) काशिका के अनुसार यह एक नगर था जो कि सम्भवत: सोन नदी पर स्थित 'सिहावल' नगर (रीवा रियासत) हो।
(२४) संकल :- (४।२।७५) यह आधुनिक सांगलावाला टीला (जि० झंग) है। यह कठ क्षत्रियों का केन्द्र था।
(२५) सांकाश्य :- (४।२।८०) फर्रुखाबाद जिले में ईक्षुमती (वर्तमान-ईखन) नदी के किनारे वर्तमान संकिसा' है जहां कि अशोककालीन स्तम्भ के चिह्न मिले हैं। सांकाश्य आदि गण में 'काम्पिल्य' नाम भी आया है जो कि फर्रुखाबाद जिले की कासगंज तहसील में वर्तमान कम्पिल' है।
(२६) सौवास्तव :- (४ १२ १७७) यह सुवास्तु वा स्वात नदी की घाटी का एक प्रधान नगर था।
(२७) हस्तिनापुर :- (४।२।१०२) यह वर्तमान हस्तिनापुर (मेरठ) है।
यह उपरिलिखित विवरण डा० वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा लिखित 'पाणिनिकालीन भारतवर्ष' नामक ग्रन्थ पर आधारित है। पाठक अधिक जानकारी के लिये उस ग्रन्थ का अध्ययन करें।
११-१२-१९९८
-सुदर्शनदेव आचार्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org