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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (७) कास्तीर :- (६।१।१५५) इस पतञ्जलि मुनि ने वाहीक (पंजाब) ग्राम कहा है। (८) कूचवार :- (४।३।९४) यह चीनी तुर्किस्तान उत्तरी तरिम उपत्यका का नाम था, जिसका अर्वाचीन नाम कूचा' है। चीनी भाषा में इसे आजकल 'कूची' कहते हैं। (९) गौडपुर :- (६।२ ।२००) यह पुण्ड्र बंगाल का प्राचीन नाम था। (१०) चिहणकन्थ :- (६।२।१२५) यह उशीनर देश का नगर था। (११) तक्षशिला :- (४।३।९३) यह पूर्वी-गन्धार की प्रसिद्ध राजधानी थी। यह सिन्धु और विपाशा (व्यास) के बीच के सब नगरों में बड़ी और समृद्ध थी। पाटलिपुत्र, मथुरा और शाकल को पुष्कलावती, कापिशी और बाल्हीक (बल्ख) से मिलानेवाली उत्तरपथ (जी०टी० रोड़) नामक राजमार्ग पर तक्षशिला मुख्य व्यापार-नगरी थी। (१२) तूदी :- (४।३।९४) इसकी पहचान अनिश्चित है। (१३) नड्वल :- (४।२।८८) यह मारवाड़ का नाडौल' नगर प्रतीत होता है। (१४) पलदी :- (४।२।११०) इसकी पहचान अज्ञात है। (१५) फलकपुर :- (४।२।१०१) यह सम्भवत: वर्तमान फिल्लौर. (जालन्धर) है। (१६) मायपुर :- (४।२।१०१) यह सम्भवत: मंडावर (बिजनौर) है जो कि अत्यन्त प्राचीन स्थान है। (१७) रोणी :- (४।२।७८) यह सम्भवतः रोड़ी (हिसार) है जो कि शैरीषक (सिरसा) के पास है। (१८) वरणा :- (४।२।८२) वरणा नामक वृक्ष के समीप बसे होने के कारण इस बस्ती का नाम ‘वरणा' पड़ा था। 'बरणा' उस दुर्ग का नाम था जो कि आश्वकायनों के राज्य में सिन्धु और स्वात नदियों के मध्य में सबसे सुदृढ रक्षा-स्थान था। यूनानी लेखकों ने इसका नाम “एओरनस' दिया है जहां अस्सकोनोई आश्वकायनों और सिकन्दर का युद्ध हुआ था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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