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________________ ओ३म् पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् __ अनुभूमिका पाणिनीय अष्टाध्यायी में भारतवर्ष सम्बन्धी कुछ ग्राम एवं नगरों के नाम उपलब्ध होते हैं। जनपद की भौगोलिक ईकाई के अन्तर्गत मनुष्यों के रहने के स्थान नगर एवं ग्राम कहलाते थे। उनमें छोटे स्थानों को घोष' और खेड़ों को 'खेट' कहा जाता था। उनका पाठकों के लाभार्थ संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया जाता है। (१) अरिष्टपुर :- (६ ।२।२००) बौद्ध साहित्य के अनुसार यह शिबि जनपद का नगर था। (२) आसन्दीवत् :- (८।२।१२/४।२।८६) यह जनमेजय पारीक्षित की राजधानी का नाम था। काशिका के अनुसार यह अहिस्थल था जो कि कुरुक्षेत्र के पास विद्यमान था। (३) ऐषुकारि :- (४।२।५४) उत्तराध्ययन-सूत्र के अनुसार कुरु जनपद में इषुकार नामक समृद्ध, सुन्दर और स्फीत नगर था। जैसे हांसी का पुराना नाम 'आसिका' था वैसे हिसार का प्राचीन नाम एषुकारि' ज्ञात होता है। (४) कत्रि :- (४।२।९५) सम्भव है यह वह स्थान है जिसे कालान्तर में अलमोड़े का कत्यूर (कत्रिपुर) कहते हैं। (५) कपिस्थल :- (८।२।९१) यह हरयाणा प्रान्त का वर्तमान जिला कैथल है। (६) कापिशी :- (४।२।९९) यह कापिशायन प्रान्त की राजधानी थी। काबुल के उत्तरपूर्व और हिन्दुकुश के दक्षिण में आधुनिक 'बेग्राम' प्राचीन कापिशी' है। जो कि घोरबन्द और पंजशीर नदियों के संगम पर स्थित थी। बाल्हीक से बामियां होकर कपिश प्रान्त (कोहिस्थान-काफिरिस्तान) में घुसनेवाले मार्ग पर कापिशी नगरी व्यापार और संस्कृति का केन्द्र थी। यह हरी दाख की उत्पत्ति का स्थान था। यहां बनी हुई 'कापिशायन' नामक विशेष प्रकार की सुरा भारतवर्ष में आती थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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