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सम्मति पण्डित सुदर्शनदेव आचार्य द्वारा 'अष्टाध्यायी-प्रवचनम्' नामक अष्टाध्यायी पर प्रथमावृत्ति रूप व्याख्या अति उत्तम है। अब तक प्रकाशित सभी प्रथमावृत्तियों में यह श्रेष्ठतम है। इसकी विशेषताएं निम्न प्रकार से हैं१. इसकी भाषा अतिसरल तथा सुबोध है। २. मन्दमति छात्र भी सूत्र के भाव को सहजभाव से समझ लेता है।
सिद्धियों को समझने के लिये अन्य सूत्र वा परिशिष्ट देखने की कोई आवश्यकता
नहीं है। सिद्धि के विषय में उसी सूत्र पर स्पष्टीकरण किया गया है। ४. सिद्धियों के जाल से छुट्टी किन्तु उदाहरणों की सिद्धि में सम्बन्धित सूत्र का
प्रयोजन अच्छे प्रकार से समझाया गया है। सूत्र, पदच्छेद-विभक्ति, समास, अनुवृत्ति, अन्वय, अर्थ और उदाहरण को अलग-अलग पैरों में छापने से छात्रों को सूत्र समझने में देरी नहीं लगती है। संस्कृत तथा आर्यभाषा (हिन्दी) दोनों भाषायें होने से इस ग्रन्थ की उपयोगिता
और बढ़गई है। मुद्रण कम्प्यूटर-कृत होने से छपाई बहुत ही साफ है। महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा सत्यार्थप्रकाश में प्रतिपादित शैली के अनुसार
होना इस ग्रन्थ की सबसे अलग विशेषता है। ९. जनपद, नदी, वन, पर्वत, नगर, ग्राम और माप-तोल आदि का भी यथास्थान
विवरण प्रस्तुत किया गया है।
इत्यादि अनेक विशेषताओं से युक्त इस ग्रन्थ के लिखने के लिए पण्डित सुदर्शनदेव आचार्य का और छपवाने हेतु समस्त प्रबन्ध करने के लिए पूज्य स्वामी ओमानन्दजी सरस्वती का कोटिशः धन्यवाद है। आप दोनों महानुभावों की पूर्ण स्वस्थता तथा दीर्घायु की कामना परमेश्वर से करता हूं, जिससे यह महान् कार्य निर्विघ्न रूप से सम्पन्न हो।
___आपसे विशेष प्रार्थना यह है कि इसी प्रकार से महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रतिपादित शैली पर आधारित अष्टाध्यायी सूत्रों पर द्वितीयावृत्ति भी लिखी जाये तो बड़ी कृपा होगी तथा संसार का बड़ा उपकार होगा।
-आचार्य भद्रकाम वर्णी ५-१२-९८
आर्यसमाज आर्यनगर, पहाड़गंज, नई दिल्ली-५५
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