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________________ पञ्चमाध्यायस्य प्रथमः पादः ४१ आर्यभाषाः अर्थ-(तस्य) षष्ठी - समर्थ (सर्वभूमिपृथिवीभ्याम् ) सर्वभूमि और पृथिवी प्रातिपदिकों से (ईश्वरः ) ईश्वर = राजा अर्थ में यथासंख्य में (अणञ) अण् प्रत्यय होते हैं। और अञ् उदा० - (सर्वभूमि) सर्वभूमि का ईश्वर = राजा-र का ईश्वर = राजा - पार्थिव (अञ्) । सार्वभौमः । सिद्धि - (१) सार्वभौमः । सर्वभूमि + ङस् +अण् । सार्वभौम् + अ । सार्वभौम + सु । - सार्वभौम (अण्) । (पृथिवी ) पृथिवी यहां षष्ठी-समर्थ 'सर्वभूमि' शब्द से ईश्वर अर्थ में इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है । (२) पार्थिव: । यहां षष्ठी - समर्थ 'पृथिवी' शब्द से ईश्वर अर्थ में 'अञ्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है । विशेषः 'तस्य' की अनुवृत्ति विद्यमान होने पर पुनः 'तस्य' पद का पाठ 'निमित्त' अर्थ की अनुवृत्ति की निवृत्ति के लिये किया गया है अन्यथा संयोग-उत्पात के समान ईश्वर अर्थ भी निमित्त अर्थ का विशेषण बन जाता। विदितार्थप्रत्ययविधिः अण्+अञ् (१) तत्र विदित इति च । ४२ । प०वि०-तत्र अव्ययपदम् विदितः १ । १ इति अव्ययपदम्, च अव्ययपदम् । अनु०-सर्वभूमिपृथिवीभ्याम्, अणञौ इति चानुवर्तते। अन्वयः -तत्र सर्वभूमिपृथिवीभ्यां विदित इति चाणञौ । अर्थ:-तत्र इति सप्तमीसमर्थाभ्यां सर्वभूमिपृथिवीभ्यां प्रातिपदिकाभ्यां विदित इति चेत्यस्मिन्नर्थे यथासंख्यमणत्रौ प्रत्ययौ भवतः । उदा०- ( सर्वभूमि:) सर्वभूमौ विदित:- सार्वभौम: (अण्) । (पृथिवी ) पृथिव्यां विदित:- पार्थिव: ( अञ्) । विदित: = ज्ञात:, प्रकाशित इत्यर्थः । इतिकरणो विवक्षार्थ: । आर्यभाषाः अर्थ- (तत्र) सप्तमी - समर्थ (सर्वभूमिपृथिवीभ्याम् ) सर्वभूमि और पृथिवी प्रातिपदिकों से (विदित:) प्रसिद्ध (इति) इस अर्थ में (च) भी यथासंख्य (अणजौ) अणु और अञ् प्रत्यय होते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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