________________
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अन्वय:-तस्य सर्वभूमिपृथिवीभ्यां निमित्तम् अणञौ, संयोगोत्पातौ।
अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थाभ्यां सर्वभूमिपृथिवीभ्यां प्रातिपदिकाभ्यां निमित्तमित्यस्मिन्नर्थे यथासंख्यम् अणञौ प्रत्ययौ भवत:, यन्निमित्तं संयोग उत्पातो वा भवति।
उदा०-(सर्वभूमि:) सर्वभूमेनिमित्तं संयोग उत्पातो वा-सार्वभौम: (अण्) । (पृथिवी) पृथिव्या निमित्तं संयोग उत्पातो वा-पार्थिव: (अञ्) ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तस्य) षष्ठी-समर्थ (सर्वभूमिपृथिवीभ्याम्) सर्वभूमि और प्रथिवी प्रातिपदिकों से (निमित्तम) निमित्त अर्थ में (अणजौ) यथासंख्य अण और अञ् प्रत्यय होते हैं (संगोगात्पातौ) जो निमित्त है यदि वह संयोग वा उत्पात हो।
उदा०-(सर्वभूमि) सर्वभूमि का निमित्त (संयोग-उत्पात)-सार्वभौम (अण्) । (पृथिवी) प्रथिवी का निमित्त (संयोग-उत्पात)-पार्थिव ।
सिद्धि-(१) सार्वभौमः । सर्वभूमि+डस्+अण्। सार्वभौम्+अ। सार्वभौम+सु। सार्वभौमः।
यहां षष्ठी-समर्थ 'सर्वभूमि' शब्द से निमित्त (संयोग-उत्पात) अर्थ में इस सूत्र से अण्' प्रत्यय है। सर्वभूमि' शब्द का अनुशतिक-आदि गण में पाठ होने से अनुशतिकादीनां च (७।३।२०) से उभयपद-वृद्धि होती है। पूर्ववत् अंग के इकार का लोप होता है।
(२) पार्थिवः । यहां पृथिवी' शब्द से पूर्ववत् इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के ईकार का लोप होता है।
ईश्वरार्थप्रत्ययविधिः अण्+अञ्
(१) तस्येश्वरः।४१। प०वि०-तस्य ६१ ईश्वर: १।१। अनु०-सर्वभूमिपृथिवीभ्याम्, अणञौ इति चानुवर्तते । अन्वय:-तस्य सर्वभूमिपृथिवीभ्याम् ईश्वरोऽणौ।
अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थाभ्यां सर्वभूमिपृथिवीभ्यां प्रातिपदिकाभ्याम् ईश्वर इत्यस्मिन्नर्थे यथासंख्यमणौ प्रत्ययौ भवतः ।
उदा०- (सर्वभूमि:) सर्वभूमेरीश्वर:-सार्वभौम: (अण्) । (पृथिवी) पृथिव्या ईश्वर:-पार्थिव: (अञ्)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org