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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
क्रीतार्थप्रत्ययविधिः
यथाविहितं प्रत्ययः
(१) तेन क्रीतम् | ३६ |
प०वि० तेन ३ । १ क्रीतम् १ । १ ।
अर्थ:- तेन इति तृतीयासमर्थात् प्रातिपदिकात् क्रीतमित्यस्मिन्नर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति ।
उदा० - सप्तत्या क्रीतम् - साप्ततिकम् । आशीतिकम् । नैष्किकम् । पाणिकम् । पादिकम् । माषिकम् । शत्यम् । शतिकम् । द्विकम् । त्रिकम् । ये ठञादयस्त्रयोदश प्रत्ययाः प्रोक्तास्तेषामितः प्रभृति समर्थविभक्तयः प्रत्ययार्थाश्चोपदिश्यन्ते ।
आर्यभाषा: अर्थ- (तेन) तृतीया-समर्थ प्रातिपदिक से (क्रीतम्) क्रीत = खरीदा हुआ अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है।
उदा०-सप्तति=सत्तर कार्षापणों से क्रीत= खरीदा हुआ-साप्ततिक। अशीति=अस्सी कार्षापणों से क्रीत-आशीतिक । निष्क-सुवर्ण मुद्रा-विशेष से क्रीत-नैष्किक । पण = कार्षापण से क्रीत-पाणिक | पाद= कार्षापण के चतुर्थ भाग से क्रीत-पादिक । माष = कार्षापण के सोलहवें भाग से क्रीत- माषिक । शत=सौ कार्षापणों से क्रीत-शत्य अथवा शतिक । द्वि= दो कार्षापणों से क्रीत-द्विक । त्रि-तीन कार्षापणों से क्रीत - त्रिक।
जो 'ठञ्' आदि १३ प्रत्यय पहले कहे गये हैं यहां से उनकी समर्थ - विभक्ति तथा प्रत्ययार्थों का उपदेश किया जाता है /
सिद्धि-(१) साप्ततिकम् | यहां तृतीया - समर्थ 'सप्तति' शब्द से क्रीत अर्थ में इस सूत्र से यथाविहित प्रत्यय का विधान किया गया है अत: यहां 'प्राग्वतेष्ठञ् (4181१८) से औत्सर्गिक 'ठञ्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है ।
(२) पाणिकम् । यहां 'पण' शब्द से 'असमासे निष्कादिभ्यः' (५1१120) से 'ठक्' प्रत्यय है। ऐसे ही - पादिकम्, माषिकम् ।
(३) शत्यम् । यहां 'शत' शब्द से 'शताच्च ठन्यतावशतें' (५ 1१।२१) से यत् प्रत्यय है।
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(४) शतिकम् | यहां 'शत' शब्द से पूर्ववत् 'ठन्' प्रत्यय है।
(५) द्विकम् | यहां संख्यावाची द्वि' शब्द से 'संख्याया अतिशदन्ताया: कन् (५1१/२२ ) से 'कन्' प्रत्यय है। ऐसे ही त्रिकम् ।
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