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पञ्चमाध्यायस्य प्रथमः पादः
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उदा०- - (अध्यर्धपूर्व) अध्यर्धशाण = डेढ शाण से क्रीत = खरीदा हुआ - अध्यर्धशाण्य (यत्) । अध्यर्धशाण (उञ्-लुक्) । (द्विगु) द्विशाण = दो शाणों से क्रीत-द्विशाण्य (यत्) । द्विशाण (ठञ्+लुक्) । त्रिशाण-तीन शाणों से क्रीत-त्रिशाण्य (यत्) । त्रिशाण ( ठञ्-लुक्) । सिद्धि - (१) अध्यर्धशाण्यम् । अध्यर्धशाण+टा+यत् । अध्यर्धशाण्+य । अध्यर्धशाण्य+सु । अध्यर्धशाण्यम् ।
यहां तृतीया-समर्थ, अध्यर्धपूर्वक 'अध्यर्धशाण' शब्द से आ-अर्हीय क्रीत-अर्थ में इस सूत्र से 'यत्' प्रत्यय है। 'यस्येति च' (६ । ४ । १४८) से अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही द्विशाण्यम्, त्रिशाण्यम् ।
(२) अध्यर्धशाणम् । अध्यर्धशाण+टा+ठञ् । अध्यर्धशाण+0 | अध्यर्धशाण+सु अध्यर्धशाणम् ।
यहां तृतीया-समर्थ 'अध्यर्धशाण' शब्द से विकल्प पक्ष में 'प्राग्वतेष्ठञ्' (५1१1१८) से औत्सर्गिक 'ठञ्' प्रत्यय है किन्तु 'अध्यर्धपूर्वाद् द्विगोर्लुगसंज्ञायाम्' (५1१/२८) से उसका लुक् हो जाता है। ऐसे ही - द्विशाणम्, त्रिशाणम् ।
विशेषः (१) शाण- चरक में सुवर्ण (सिक्का) का चौथाई भाग शाण कहा गया है। इससे शाण की तोल २० रत्ती के बराबर हुई (कल्पस्थान १२ । २९ ) । शाणार्ध-उसका आधा-दस रत्ती के बराबर ओषधि की स्वल्पमात्रा तोलने में काम आता था । महाभारत में शाण को शतमान का आठवां भाग कहा गया है ( आरण्यक पर्व १३४ | १४) । जिससे उसकी पुरानी तोल १२ ।। रत्ती ठहरती हैं (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० २४३) ।
इस उपरिलिखित प्रमाण के अनुसार सूत्रोक्त शाण- मुद्रा का तोल- विवरण
निम्नलिखित है
मुद्रा का नाम
शाण
शाण
एक मुद्रा
(सुवर्ण)
२० रत्ती
१२ । । रत्ती
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अध्यर्ध
मुद्रा
३० रत्ती
१८ । । रत्ती
द्वि-मुद्रा
४० रत्ती
२५ रत्ती
त्रि-मुद्रा
६० रत्ती (चरकानुसारी) ३७ ।। रत्ती
( महाभारतानुसारी)
मुद्राओं का तोल समय-समय पर घटता-बढ़ता रहता है।
(२) काशिकाकार पं० जयादित्य ने 'द्वित्रिपूर्वादण् च' (५1१1३६ ) इस वार्तिक सूत्र की पाणिनीय सूत्र मानकर व्याख्या की है किन्तु यह महाभाष्य के अनुसार वार्तिक5- सूत्र है अत: इसका यहां प्रवचन नहीं किया जाता है।
।। इति प्राक्क्रीतीयच्छाधिकारः । ।
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