________________
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
(२) प्रतिराजम् । यहां प्रति और राजन शब्दों का लक्षणेनाभिप्रती आभिमुख्ये (२1१1१४) से अव्ययीभाव समास है । शेष कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही - प्रत्यात्मम् ।
४६६
(३) अध्यात्मम् । यहां अधि और आत्मन् शब्दों का 'अव्ययं विभक्ति०' (२।१।६ ) से सप्तमी विभक्ति के अर्थ में अव्ययीभाव समास है। शेष कार्य पूर्ववत् है ।
टच्
(३) नपुंसकादन्यतरस्याम् । १०६ । प०वि० - नपुंसकात् ५ ।१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम् । अनु०-समासान्ता:, टच्, अव्ययीभावे, अन इति चानुवर्तते । अन्वयः - अव्ययीभावे नपुंसकाद् अनोऽन्यतरस्यां समासान्तष्टच् । अर्थ:-अव्ययीभावे समासे वर्तमानाद् नपुंसकलिङ्गाद् अन्नन्तात् प्रातिपदिकाद् विकल्पेन समासान्तष्टच् प्रत्ययो भवति ।
उदा० - चर्मणः समीपम् - उपचर्मम्, उपचर्म । चर्म प्रति - प्रतिचर्मम्, प्रतिचर्म ।
आर्यभाषाः अर्थ- (अव्ययीभावे) अव्ययीभाव समास में विद्यमान (नपुंसकात्) नपुंसकलिङ्ग (अन: ) अन् जिसके अन्त में है उस प्रातिपदिक से (अन्यतरस्याम्) विकल्प से ( समासान्तः) समास का अवयव (टच्) टच् प्रत्यय होता है ।
उदा० - चर्म = चमड़े के पास - उपचर्म, उपचर्मन् । चर्म को लक्ष्य करके - प्रतिचर्म, प्रतिचर्मन् ।
सिद्धि - (१) उपचर्मम् । यहां उप और नपुंसकलिङ्ग चर्मन् शब्दों का 'अव्ययं विभक्ति०' (२1१/६ ) से समीप अर्थ में अव्ययीभाव समास है। 'उपचर्मन्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त टच्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है ।
(२) उपचर्म। यहां उप और नपुंसकलिङ्ग चर्मन् शब्दों का पूर्ववत् अव्ययीभाव समास है तथा विकल्प पक्ष में 'टच्' प्रत्यय नहीं है । 'नलोपः प्रातिपदिकान्तस्य ' (८/२/७ ) से 'चर्मन्' के नकार का लोप होता है।
(३) प्रतिचर्मम् । यहां प्रति और नपुंसकलिङ्ग चर्मन् शब्दों का 'लक्षणेनाभिप्रती आभिमुख्ये' (२1१1१४ ) से अव्ययीभाव समास है। शेष कार्य पूर्ववत् है ।
(४) प्रतिचर्म । यहां प्रति और नपुंसकलिङ्ग 'चर्मन्' शब्दों का पूर्ववत् अव्ययीभाव समास है। तथा विकल्प पक्ष में 'टच्' प्रत्यय नहीं है। शेष कार्य पूर्ववत् है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org