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पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः
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आर्यभाषाः अर्थ-(अव्ययीभावे) अव्ययीभाव समास में विद्यमान (शरत्प्रभृतिभ्यः) शरत्-आदि प्रातिपदिकों से (समासान्तः) समास का अवयव (टच्) टच् प्रत्यय होता है । उदा० - शरद् ऋतु के समीप - उपशरद । विपाश्= व्यास नदी के पास - उपविपाश । शरद् ऋतु को लक्ष्य करके-प्रतिशरद । विपाश् नदी को लक्ष्य करके - प्रतिविपाश इत्यादि । सिद्धि - (१) उपशरदम् । उप+सु+शरद् + ङस् । उप+शरद् । उपशरद्+टच् । उपशरद्+अ । उपशरद्+सु। उपशरदम्।
यहां उप और शरद् शब्दों का 'अव्ययं विभक्ति०' (२1१ 1६ ) से समीप अर्थ में अव्ययीभाव समास है। उपशरद् शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'टच्' प्रत्यय है। ऐसे ही - उपविपाशम् ।
(२) प्रतिशरदम् । यहां प्रति शरद् शब्दों का लक्षणेनाभिप्रती आभिमुख्ये (२1१1१४) से अव्ययीभाव समास है। शेष कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही - प्रतिविपाशम् । टच्–
(२) अनश्च | १०८ |
प०वि० - अन: ५ | १ च अव्ययपदम् ।
अनु०-समासान्ता:, टच्, अव्ययीभावे इति चानुवर्तते ।
अन्वयः - अव्ययीभावेऽनश्च समासान्तष्टच् ।
अर्थः- अव्ययीभावे समासे वर्तमानाद् अन्नन्तात् प्रातिपदिकाच्च समासान्तष्टच् प्रत्ययो भवति ।
उदा०-राज्ञ: समीपम्-उपराजम् । राजानं प्रति-प्रतिराजम्। आत्मनि अधि-अध्यात्मम्। आत्मानं प्रति-प्रत्यात्मम् ।
आर्यभाषाः अर्थ- (अव्ययीभावे) अव्ययीभाव समास में विद्यमान (अन: ) अन् जिसके अन्त में है उस प्रातिपदिक से (च ) भी (समासान्तः) समास का अवयव (टच्) टच् प्रत्यय होता है।
उदा० - राजा के समीप - उपराज । राजा को लक्ष्य करके-प्रतिराज । आत्मा के विषय में अध्यात्म | आत्मा को लक्ष्य करके - प्रत्यात्म |
सिद्धि - (१) उपराजम् । उप+सु+राजन्+ङस् । उप+राजन्। उपराजन्+टच् । उपराज्+अ। उपराज+सु। उपराजम् ।
यहां उप और राजन् शब्दों का 'अव्ययं विभक्ति०' (२1१ 1६ ) से समीप - अर्थ में अव्ययीभाव समास है। 'उपराजन्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'टच्' प्रत्यय है। 'नस्तद्धिते' (६।४।१४४) से अंग के टि-भाग का लोप होता है।
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