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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ४४६ से रेफ को उत्व होता है । 'यस्येति च' (६ । ४ । १४८) से अंग के इकार का लोप होता है । 'रात्रानाहा: पुंसि' (२।४।२९) से पुंलिङ्गता होती है। (२) सर्वरात्र । यहां सर्व और रात्रि शब्दों का पूर्वकालैकसर्व० ' (२।१।४९) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। शेष कार्य पूर्ववत् है । (३) पूर्वरात्र: । यहां पूर्व और रात्रि शब्दों का 'पूर्वपरावराधर० ' (२1१1१) से एकदेशितत्पुरुष समास होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है । (४) संख्यातरात्र: । यहां संख्यात और रात्रि शब्दों का 'विशेषणं विशेष्येण बहुलम्' (२1१1५७) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है । शेष कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही - पुण्यरात्र: । (५) द्विरात्र: । यहां द्वि और रात्रि शब्दों का तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च (2181५१) से समाहार अर्थ में द्विगुतत्पुरुष समास है, शेष कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही - त्रिरात्र: । (६) अतिरात्र:। यहां अति और रात्रि शब्दों का 'कुगतिप्रादयः' (२।२1१८) से प्रादितत्पुरुष समास है । (७) नीरात्र: । यहां निर् और रात्रि शब्दों का पूर्ववत् प्रादितत्पुरुष समास है । 'रो रि' (८ । ३ । १४) से निर्' के रेफ का लोप होकर लोपे पूर्वस्य दीर्घोऽण: ' ( ६ / ३ / १११ ) से दीर्घत्व होता है। अन-आदेशः (३) अह्नोऽह्न एतेभ्यः । ८८ । प०वि० - अह्न: ६ । १ अह्नः १ । १ एतेभ्य: ५ । ३ । अनु०-समासान्ता:, तत्पुरुषस्य संख्याव्ययादेः सर्वैकदेशसंख्यातपुण्याद् इति चानुवर्तते। " अन्वयः-एतेभ्यः=संख्याव्ययादेः सर्वैकदेशसंख्यातपुण्येभ्यस्तत्पुरुषस्याह्नः समासान्तोऽह्नः । अर्थः-एतेभ्यः=संख्याव्ययादेः सर्वैकदेशसंख्यातपुण्येभ्यश्च परस्य तत्पुरुषसंज्ञकस्य अहन्-शब्दस्य स्थाने समासान्तो ऽह्न आदेशो भवति । उदा०- (संख्यादिः) द्वयोरह्नो भव:- द्वयह्नः । त्रह्नः । (अव्ययादिः) अहरतिक्रान्त:-अत्यह्नः । अह्नो निष्क्रान्तः-निरन: । ( सर्वम् ) सर्वं च Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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