________________
४२३
पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः
४२३ अन्वय:-कृञ्योगे पाके शूलाड् डाच् ।
अर्थ:-कृञ्योगे पाके चार्थे वर्तमानाच्छूलशब्दात् प्रातिपदिकाड् डाच् प्रत्ययो भवति।
उदा०-शूले पचति-शूला करोति मांसम्।
आर्यभाषा: अर्थ-(कृञः) कृञ् के योग में और (पाके) पकाना अर्थ में विद्यमान (शूलात्) शूल प्रातिपदिक से (डाच्) डाच् प्रत्यय होता है।
उदा०-मांस को शूल पर पकाता है-शूला करता है।
सिद्धि-शुला करोति । यहां 'कञ्' के योग में और पाक अर्थ में विद्यमान शूल' शब्द से इस सूत्र से 'डाच्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
अशपथार्थप्रत्ययविधिः डाच
(१) सत्यादशपथे।६६। प०वि०-सत्यात् ५।१ अशपथे ७।१।
स०-न शपथम्-अशपथम्, तस्मिन्-अशपथे (नञ्तत्पुरुष:)। शपथम्= व्रतमित्यर्थः।
अनु०-डाच्, कृञ इति चानुवर्तते। अन्वय:-कृञ्योगेऽशपथे च सत्याड् डाच् ।
अर्थ:-कृञ्योगे अशपथे शपथवर्जितऽर्थे वर्तमानात् सत्यशब्दात् प्रातिपदिकाड् डाच् प्रत्ययो भवति।।
उदा०-सत्यं करोति-सत्या करोति वणिक् भाण्डम्। मयैतत् क्रेतव्यमस्तीति तथ्यं करोति।
आर्यभाषा: अर्थ-(कृञः) कृञ् के योग में और (अशपथे) शपथ व्रत अर्थ से भिन्न अर्थ में विद्यमान (सत्यात्) सत्य प्रातिपदिक से (डाच्) डाच् प्रत्यय होता है।
उदा०-वणिक् व्यापारी भाण्ड रत्न आदि द्रव्य को सत्य करता है-सत्या करता है। मुझे यह रत्न आदि द्रव्य खरीदना है, इसे तथ्य (पक्का) करता है।
सिद्धि-सत्या करोति । यहां कृञ्' के योग में और शपथ-वर्जित अर्थ में विद्यमान सत्य' शब्द से इस सूत्र से 'डाच्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org