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पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः
शस्
(३६) बहल्पार्थाच्छस् कारकादन्यतरस्याम् ॥४२ । प०वि०-बहु-अल्पार्थात् ५ ।१ शस् १ ।१ कारकात् ५ ।१ अन्यतरस्याम्
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अव्ययपदम् ।
स०-बहुश्च अल्पश्च तौ बह्वल्पौ, बह्वल्पावर्थौ यस्य तत्-बह्वल्पार्थम्, तस्मात्-बह्वल्पार्थात् (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितबहुव्रीहि: ) ।
अन्वयः - कारकाद् बह्वल्पार्थात् स्वार्थेऽन्यतरस्यां शस् । अर्थ:-कारकाभिधायिनो बह्रर्थाद् अल्पार्थाच्च प्रातिपदिकात् स्वार्थे विकल्पेन शस् प्रत्ययो भवति ।
उदा०- (बहु- अर्थात्) बहूनि ददाति - बहुशो ददाति । बहुभिर्ददातिबहुशो ददाति । बहुभ्यो ददाति - बहुशो ददाति । भूरिशो ददाति । (अल्पार्थात्) अल्पं ददाति-अल्पशो ददाति । अल्पेन ददाति - अल्पशो ददाति । अल्पाय ददाति - अल्पशो ददाति । स्तोकशो ददाति ।
आर्यभाषाः अर्थ- (कारकात्) कारकवाची ( बह्वल्पार्थात्) बहु- अर्थक तथा अल्पार्थक प्रातिपदिकों से स्वार्थ में '(अन्यतरस्याम्) विकल्प से (शस्) शस् प्रत्यय होता है।
उदा०- (बहु- अर्थक) बहुतों को देता है - बहुश: देता है। बहुतों के कारण से देता है - बहुश: देता है । बहुतों के लिये देता है- बहुश: देता है। ऐसे ही बहु- अर्थक 'भूरि' शब्द से- भूरिशः देता है । (अल्पार्थक ) अल्प (थोड़ा) पदार्थ को देता है- अल्पश: देता है । अल्प के कारण से देता है- अल्पशः देता है । अल्प के लिये देता है- अल्पश: देता है। ऐसे ही अल्पार्थक 'स्तोक' शब्द से स्तोकश: देता
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सिद्धि- बहुश: । बहु+शस्+शस् । बहु+शस् । बहुशस्+ सु । बहुशस् +0 | बहुशरु । बहुशर् । बहुश: ।
यहां कारकवाची बह्वर्थक 'बहु' शब्द से इस सूत्र से स्वार्थ में 'शस्' प्रत्यय है । 'स्वरादिनिपातनत्र्थ्यम्' (१1१1३७) से अव्यय - संज्ञा होकर 'अव्ययादाप्सुप:' (२/४/८२) से 'सु' का लुक् होता है। 'ससजुषो रु' (८ / २ / ६६ ) से सकार को रुत्व और 'खरवसानयोर्विसर्जनीय:' ( ८1३ 1१५ ) से रेफ को बिसर्जनीय आदेश होता है। ऐसे ही - भूरिशः, स्तोकश: ।
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