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ર૬૪
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ___ स०-न नित्यम्-अनित्यम्, तस्मिन्-अनित्ये (नञ्तत्पुरुष:)।
अनु०-कन्, लोहिताद् इति चानुवर्तते। अन्वय:-अनित्ये वर्णे च लोहितात् स्वार्थे कन्।
अर्थ:-अनित्ये वर्णे चार्थे वर्तमानाल्लोहितशब्दात् प्रातिपदिकात् स्वार्थे कन् प्रत्ययो भवति।
उदा०-लोहित एव-लोहितक: कोपेन । लोहितक: पीडनेन।
आर्यभाषा: अर्थ-(अनित्ये) अध्रुव अस्थायी (वर्णे) रंग अर्थ में (च) भी विद्यमान (लोहितात्) लोहित प्रातिपदिक से स्वार्थ में (कन्) कन् प्रत्यय होता है।
उदा०-लोहित-लाल वर्ण ही-लोहितक (क्रोध से)। लोहित वर्ण ही-लोहितक (पीटने से)।
सिद्धि-लोहितकः । लोहित+सु+कन्। लोहित+क । लोहित+सु। लोहितकः ।
यहां अनित्य वर्ण अर्थ में विद्यमान लोहित' शब्द से इस सूत्र से स्वार्थ में कन्' प्रत्यय है। कन्
(२६) रक्ते।३२। वि०-रक्ते ७।१। अनु०-कन्, लोहिताद् इति चानुवर्तते। अन्वय:-रक्ते लोहित-शब्दात् स्वार्थे कन्।
अर्थ:-रक्तेऽर्थे वर्तमानाल्लोहितशब्दात् प्रातिपदिकात् स्वार्थे कन् प्रत्ययो भवति।
उदा०-लोहित: लाक्षादिना रक्त एव-लोहितक: कम्बल: । लोहितक: पटः।
आर्यभाषा: अर्थ-(रक्ते) रंगा हुआ अर्थ में विद्यमान (लोहितात्) लोहित प्रातिपदिक से स्वार्थ में (कन्) कन् प्रत्यय होता है।
उदा०-लोहित लाख आदि से रंगा हुआ-लोहितक कम्बल । लोहितक पट (कपड़ा)।
सिद्धि-लोहितकः । यहां रक्त अर्थ में विद्यमान लोहित' शब्द से इस सूत्र से कन्' प्रत्यय है।
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