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पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः यहां एकारान्त (सप्तम्यन्त) पूर्वाणे शब्द से पूर्ववत् घ-संज्ञक तरप्' प्रत्यय है। 'घकालतनेषु कालनाम्नः' (६।३।१७) से सप्तमी का अलुक् होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(४) पूर्वाह्णतमाम् । यहां एकारान्त (सप्तम्यन्त) पूर्वाह्ण शब्द से पूर्ववत् घ-संज्ञक तमप्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(५) पचतितराम् । यहां तिङन्त पचति' शब्द से पूर्ववत् घ-संज्ञक 'तरप्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(६) पचतितमाम् । यहां तिङन्त पचति' शब्द से पूर्ववत् घ-संज्ञक तमप्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(७) उच्चैस्तराम्। यहां अव्यय-संज्ञक 'उच्चैस्' शब्द पूर्ववत् घ-संज्ञक तरप्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(८) उच्चैस्तमाम् । यहां अव्यय-संज्ञक उच्चैस्' शब्द से पूर्ववत् घ-संज्ञक तमप्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। अमु+आमु
(६) अमु च च्छन्दसि।१२। प०वि०-अमु १।१ च अव्ययपदम्, छन्दसि ७।१। अनु०-किमेत्तिङव्ययघात्, आमु, अद्रव्यप्रकर्षे इति चानुवर्तते। अन्वय:-छन्दसि अद्रव्यप्रकर्षे किमेत्तिङव्ययघाद् अमु आमु च।
अर्थ:-छन्दसि विषयेऽद्रव्यप्रकर्षेऽर्थे वर्तमानेभ्य: किमेत्तिङव्ययेभ्यः प्रातिपदिकेभ्यो यो घ: प्रत्ययो विहितस्तदन्तात् प्रातिपदिकाद् अमु आमु च प्रत्ययौ भवतः।
उदा०-(अमु) प्रतरं न आयु: (ऋ० ४।१२।६)। (आमु) प्रतरां नय (यजु० १७ ।५१)।
आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (अद्रव्यप्रकर्षे) द्रव्य के प्रकर्ष=अतिशय अर्थ में अविद्यमान (किमेत्तिडव्ययघात्) किम्, एत् एकारान्त, तिङन्त, अव्यय शब्दों से जो घ प्रत्यय विहित है तदन्त प्रातिपदिक से (अमु) अमु (च) और (आमु) आमु प्रत्यय होते हैं।
उदा०-(अमु) प्रतरं न आयु: (ऋ० ४।१२।६) । हमारी आयु प्रकृष्टतर हो। (आमु) प्रतरां नय (यजु० १७ १५१) । हे ईश्वर ! आप मुझे प्रकृष्टता को प्राप्त कराइये।
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