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________________ पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः ३७७ (५) राजाधीनः । राजन् + ङि + अधि + सु । राज + अधि । राजाधि + सु+ख । राजाध्+ईन। राजाधीन+सु । राजाधीनः । यहां प्रथम राजन् और अधि सुबन्तों का 'सप्तमी शौण्डै: ' (२1१1४०) से सप्तमीतत्पुरुष होता है। 'अधि' शब्द शौण्डादिगण में पठित है। तत्पश्चात् 'राजाधि' शब्द से इस सूत्र से स्वार्थ में 'ख' प्रत्यय होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है । ख- विकल्प: (२) विभाषाऽञ्चेरदिस्त्रियाम् । ८ । प०वि०-विभाषा १।१ अञ्चे: ५ ।१ अदिक् - स्त्रियाम् ७।१। सo - दिक् चासौ स्त्री - दिक्स्त्री, न दिक्स्त्री- अदिक्स्त्री, तस्याम्अदिक्स्त्रियाम् (कर्मधारयगर्भितनञ्तत्पुरुषः) । अनु०-ख इत्यनुवर्तते। अन्वयः - अदिस्त्रियाम् अञ्चेर्विभाषा खः । अर्थ:-अदिस्त्रियां वर्तमानाद् अञ्चति - अन्तात् प्रातिपदिकात् स्वार्थे विकल्पेन ख: प्रत्ययो भवति । उदा०-प्राक्, प्राचीनम्। अर्वाक्, अर्वाचीनम् । आर्यभाषाः अर्थ-(अदिस्त्रियाम्) दिशावाची स्त्रीलिङ्ग से भिन्न विषय में विद्यमान ( अञ्चे: ) अञ्चति - अन्तवाले प्रातिपदिक से स्वार्थ में (विभाषा) विकल्प से (ख) ख प्रत्यय होता है। उदा० - प्राक्, प्राचीन (पुराना)। अर्वाक्, अर्वाचीन ( नया ) । सिद्धि-(१) प्राक् । प्र उपसर्गपूर्वक 'अञ्चु गतौं' (भ्वा०प०) धातु से 'ऋत्विक्दधृक्ο' ( ३/३/५९ ) से क्विन्' प्रत्यय करने पर 'प्राक्' शब्द सिद्ध होता है। इसकी समस्त सिद्धि वहां देख लेवें । यहां दिशावाची, स्त्रीलिङ्ग से भिन्न अञ्चति - अन्त 'प्राक्' शब्द से इस सूत्र से स्वार्थ में 'ख' प्रत्यय नहीं होता है । (२) प्राचीनम् । प्र+अञ्चु + क्विन् । प्र+अच्+वि । प्र+अच्+0 | प्र+अच्+ख । प्र+अच्+ईन। प्र+वच्+ईन। प्रा+च्+ईन। प्राचीन+सु। प्राचीनम् । यहां प्र उपवर्गपूर्वक 'अञ्चु गतौं' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् 'क्विन्' प्रत्यय होता है। तत्पश्चात् दिशावाची, स्त्रीलिङ्ग से भिन्न अञ्चति - अन्त प्र+अच्' शब्द से इस सूत्र से स्वार्थ में 'ख' प्रत्यय करने पर 'अच: ' ( ६ |४ | १३८ ) से अञ्चति के अकार का लोप और 'चौं' (६ 1१1१२२ ) से उपसर्ग को दीर्घ होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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